भैरवी साधना और भैरवी ||||| तंत्र साधना शक्ति साधना है |शक्ति प्राप्त करके उससे मोक्ष की अवधारणा तंत्र की मूल अवधारणा है |स्त्रियों को शक्ति का रूप माना जाता है ,कारण प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा जिसे शक्ति कहते हैं स्त्रियों में शीघ्रता से अवतरित होती है ,और तंत्र शक्ति को शीघ्र और अत्यधिक पाने का मार्ग है अतः तंत्र के क्षेत्र में प्रविष्ट होने के उपरांत साधक को किसी न किसी चरण में भैरवी का साहचर्य ग्रहण करना पड़ता ही है। तंत्र की एक निश्चित मर्यादा होती है। प्रत्येक साधक, चाहे वह युवा हो, अथवा वृद्ध, इसका उल्लंघन कर ही नहीं सकता, क्योंकि भैरवी ‘शक्ति’ का ही एक रूप होती है, तथा तंत्र की तो सम्पूर्ण भावभूमि ही, ‘शक्ति’ पर आधारित है।भैरवी ,स्त्री होती है और स्त्री शरीर रचना की दृष्टि से और मानसिक संरचना की दृष्टि से कोमल और भावुकता प्रधान होती है |यह उसका नैसर्गिक प्राकृतिक गुण है |उसमे ऋण ध्रुव अधिक शक्तिशाली होता है और शक्ति साधना प्रकृति के ऋण शक्ति की साधना ही है |इसलिए भैरवी में ऋण शक्ति का अवतरण अतिशीघ्र और सुगमता से होता है जबकि पुरुष अथवा भैरव में इसका वतरण और प्राप्ति कठिनता स...