जब हमारे ग्रहों की स्थिति ठीक नहीं चल रही होती है तो हम कुछ विशेष कार्यों को करके हम इन ग्रहों को अपने अनुकूल बना सकते हैं जिससे की हमारा जीवन सुचारू ढंग से चलता रहे और हमारे सामने जो भी समस्याएँ आ रही हैं वो सब दूर हो जायें. हमारे जीवन में जो भी बाधाएं और परेशानियाँ आती हैं वो सब ग्रहों की स्तिथि ठीक ना होने के कारण से ही आती हैं. हमारे गृह जब ठीक तरीके से चल रहे होते हैं तो हमारे सामने जो भी परेशानिया आ रही होती हैं वे सब अपने आप दूर हो जाती हैं. हमारे जितने भी गृह होते हैं वो सब अलग अलग गुणों का नियंत्रण करते हैं. सूर्य आत्मा का नियंत्रण करता है. जब हम अपनी आत्मिक सकती को बड़ा लेते हैं अपनी आत्मा को मजबूत बना लेते हैं तो ऐसा करने से हमारा जो सूर्य होता है वह ताकतवर हो जाता है. जब हमारा चंद्रमा कमजोर चल रहा होता है तो हमें अपनी मानसिक शक्ति को बढ़ा लेना चाहिये. मानसिक शक्ति को बढ़ा लेने से हमारा जो चंद्रमा होता है उसकी ताकत बढ़ जाती है. चन्द्र को मन का नियंत्रणकर्ता माना जाता है. मंगल जो होता है वह हमारे पराक्रम का नियंत्रण करता है और हमें शक्ति देता है. जब हम अपने पराक्रम को बढ़ा लेते हैं तो इससे हमारे मंगल को शक्ति मिलती है और मंगल मजबूत हो जाता है. बुद्ध जो होता है वह हमारी बुद्धि का परतिनिधित्व करता है. जब हम अपनी बुद्धि का ठीक ढंग से इस्तेमाल करते हें, बुद्धि का सही उपयोग करने से बुद्ध जो होता है वह ताकतवर हो जाता है उसकी शक्ति बढ़ जाती है इसलिए हमें चाहिये की हम अपनी बुद्धि का बिल्कुल सही तरीके से इस्तेमाल करें और अपनी बुद्धि को इधर उधर भटकने न दें. गुरु जो होता है वह विवेक का नियंत्रण करता है. जब हम अपने विवेक को बढ़ा लेते हें तो इससे हमारा गुरु जो होता है वह ताकतवर हो जाता हैशुक्र जो होता है वह सद्कर्मो का नियंत्रण करता है. जब हम अच्छे कर्म करतें हैं कोई बुरा काम नहीं करते हैं कोई बुरी लत नहीं लगते हैं तो ऐसा करने से शुक्र मजबूत हो जाता है. हमें ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए क्योंकि ब्रह्मचर्य का पालन करने से हमारा शुक्र मजबूत होता है. शनि जो होता है वह सत्य भाव का प्रतिनिद्धित्व करता है, जब हम सत्य बोलते हैं और किसी के प्रति बुरी भावना नहीं रखते हैं तो ऐसा करने से हमारा शनि जो होता है वह ताकतवर हो जाता है. यदि हम ऊपर बताई गई बातों को मानते हैं व् उन्हें अपनाते हैं तो ऐसा करके हम ग्रहों को अपने अनुकूल बना लेते हैं.
स्तंभन तंत्र प्रयोग: स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर पर भी पड़ता है। स्तंभन के कुछ अन्य प्रयोग भी होते हैं। जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन और क्रिया स्तंभन आदि। त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे। तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है। शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है। इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिए। अग्नि स्तंभन का मंत्र निम्न है। ।। ॐ नमो अग्निरुपाय मम् शरीरे स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा ।। इस मंत्र के दस हजार जप करने से सिद्धि होती है तथा एक सौ आठ जप करने से प्रयोग सिद्ध होता है। स्तंभन से संबंधित कुछ प्रयोग निम्नलिखित है: 1....
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