श्री हनुमान अष्टादशाक्षर मन्त्र-प्रयोग–वैदिक जगत—मन्त्रः- “ॐ नमो हनुमते आवेशय आवेशय स्वाहा ।”विधिः- सबसे पहले हनुमान जी की एक मूर्त्ति रक्त-चन्दन से बनवाए । किसी शुभ मुहूर्त्त में उस मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कर उसे रक्त-वस्त्रों से सु-शोभित करे । फिर रात्रि में स्वयं रक्त-वस्त्र धारण कर, रक्त आसन पर पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे । हनुमान जी उक्त मूर्त्ति का पञ्चोपचार से पूजन करे । किसी नवीन पात्र में गुड़ के चूरे का नैवेद्य लगाए और नैवेद्य को मूर्ति के सम्मुख रखा रहने दे । घृत का ‘दीपक’ जलाकर, रुद्राक्ष की माला से उक्त ‘मन्त्र’ का नित्य ११०० जप करे और जप के बाद स्वयं भोजन कर, ‘जप’-स्थान पर रक्त-वस्त्र के बिछावन पर सो जाए ।अगली रात्रि में जब पुनः पूजन कर नैवेद्य लगाए, तब पहले दिन के नैवेद्य को दूसरे पात्र में रख लें । इस प्रकार ११ दिन करे ।१२वें दिन एकत्र हुआ ‘नैवेद्य’ किसी दुर्बल ब्राह्मण को दे दें अथवा पृथ्वी में गाड़ दे । ऐसा करने से हनुमान जी रात्रि में स्वप्न में दर्शन देकर सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान कर सेते हैं । ‘प्रयोग’ को गुप्त-भाव से करना चाहिए । हनुमान सिद्धि मन्त्रः-“अजरंग पहनूं, बजरंग पहनूं, सबरंग रक्खू पास । दांये चले भीम सेन, बांये हनुमन्त, आगे चले काजी साहब, पीछे कुल बलारद । आतर चौकी कच्छ कुरान । आगे पीछे तूं रहमान । धड़ खुदा, सिर राखे । सुलेमान, लोहे का कोट, तांबे का ताला, करला । हंसा बीरा । करतल बसे समुद्र तीर हांक चले हनुमान की निर्मल रहे शरीर । ( शाबर मन्त्र )विधिः- इस मन्त्र का अनुष्ठान २१ दिन का है, किसी भी मंगलवार की रात्री को हनुमान जी विषयक सभी नियम मानते हुए, साधक प्रतिदिन ११ माला जप करें तो हनुमान जी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रुप में दर्शन देकर उसकी समस्त अभिलाषाएं पूरी करते हैं ।
स्तंभन तंत्र प्रयोग: स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर पर भी पड़ता है। स्तंभन के कुछ अन्य प्रयोग भी होते हैं। जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन और क्रिया स्तंभन आदि। त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे। तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है। शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है। इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिए। अग्नि स्तंभन का मंत्र निम्न है। ।। ॐ नमो अग्निरुपाय मम् शरीरे स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा ।। इस मंत्र के दस हजार जप करने से सिद्धि होती है तथा एक सौ आठ जप करने से प्रयोग सिद्ध होता है। स्तंभन से संबंधित कुछ प्रयोग निम्नलिखित है: 1....
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