* घर में सत्संग प्रवचन का आयोजन करें। रामायण पाठ, सत्यनारायण कथा, सुंदरकांड आदि का आयोजन करते रहें। अतिरिक्त स्थान घर में हो तो धर्म-कार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु उस स्थान को किसी संत या गुरु के कार्य हेतु अर्पण करें।* संतों महात्माओं के चरण घर में पडऩे से घर का वास्तु काफी हद तक शुद्ध हो जाता है अत: संतों के आगमन के लिए अपनी-अपनी भक्ति बढ़ाएं।* घर में तुलसी के पौधे लगाएं।* घर एवं आसपास के परिसर को स्वच्छ रखें।* घर में यथासंभव नियमित गौ मूत्र का छिड़काव करें।* घर के अंदर सप्ताह में दो दिन कच्ची नीम पत्ती की धूनी जलाएं। पानी में नमक और फिटकरी मिलाकर पोंछा लगाएं।* घर में सुबह-शाम कंडे प्रज्वलित कर गूगल और कपूर का धूना एवं लोबान से धूप करें।* घर की चारों दीवारों पर वास्तु शुद्धि की सात्विक नाम जप की पट्टियां लगाएं।* संतों के भजन, स्रोत पठन या मंत्रों की मशीन अथवा या सात्विक नाम जप की ध्वनि चक्रिका चलाएं।* घर में अपने मृत पितरों के चित्र अपनी दृष्टि के सामने न रखें।* घर में कलह-क्लेश टालें। वास्तु देवता ‘तथास्तु’ कहते रहते हैं अत: क्लेश से कष्ट और बढ़ता है एवं धन का नाश होता है।* प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें, घर के सदस्यों के मात्र प्रसन्नचित रहने से ही घर की ऊर्जा तक शुद्धि हो जाती है।* घर में अधिक से अधिक समय सभी कार्य करते हुए नाम जप, स्रोत आदि का पाठ करें।* सुबह और संध्या समय घर के सभी सदस्य मिल कर पूजा स्थल पर आरती करें।* घर के पर्दे, दीवार, चादर इत्यादि के रंग हल्के रखें। घर की चादर, पर्दे या दीवारों का रंग काले, बैंगनी या गहरे रंग के न हों।
स्तंभन तंत्र प्रयोग: स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर पर भी पड़ता है। स्तंभन के कुछ अन्य प्रयोग भी होते हैं। जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन और क्रिया स्तंभन आदि। त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे। तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है। शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है। इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिए। अग्नि स्तंभन का मंत्र निम्न है। ।। ॐ नमो अग्निरुपाय मम् शरीरे स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा ।। इस मंत्र के दस हजार जप करने से सिद्धि होती है तथा एक सौ आठ जप करने से प्रयोग सिद्ध होता है। स्तंभन से संबंधित कुछ प्रयोग निम्नलिखित है: 1....
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