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तांत्रिक मारण क्रिया करने के आवश्यक नियम व सावधानी

हम जो दुनिया को देते हैं वो हमें एक न एक दिन बापस जरूर मिलता है, दुसरो के साथ जैंसा कर्म करेंगे वैसा एक दिन हमारे पास लौटकर आता है। यह प्रकृति का नियम है। इसलिए हमेशा अच्छा कर्म करें ताकि लौटकर जो आये वो अच्छा ही आये।तांत्रिक मारण क्रिया करते समय ये बात अवश्य ध्यान रखना चाहिए।1. छोटे मोटे वाद विवाद, छोटी बातों के कारण शत्रु पर मारण प्रयोग कभी नही करना चाहिए।2. किसी भी व्यक्ति का नाम लेकर कभी मारण क्रिया नहीं करना चाहिए। क्योंकि हमारी जिंदगी CID के सीरियल की तरह होती है कभी कभी शक किसी पर करते हैं और आरोपी कोई और निकलता है। शक के आधार पर कभी किसी पर मारण प्रयोग न करें।3. अमुक की जगह “मम सर्व शत्रु” का प्रयोग करें। मारण मंत्र से उत्तपन्न हुई ऊर्जा/दैवीय शक्ति स्वयं ही आपके सभी शत्रुओं एवं विरोधियों को खोजकर समाप्त करती जाएगी।4. जब कोई हमारा बारे मे अच्छा सोचता है तो उसके अंदर से सकारात्मक तरंगे निकलकर लगातार हमसे टकराती रहती हैं। जो हमे फायदा पहुंचाती रहती हैं, और जब कोई हमारे बारे मे बुरा सोचता है तो उसके अंदर से नकारात्मक तरंगे निकलकर हमसे टकराती रहती हैं। जो हमे लगातार हानि पहुंचाती रहती हैं। दुआ एवं बददुआ भी इसी सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। इन तरंगो को हम नहीं देख सकते हैं लेकिन दैवीय/राक्षसी शक्ति इन तरंगो को पहचान कर स्रोत/सोर्स तक पहुँचकर प्रहार कर देती हैं। जिस तरह पुलिस डॉग स्क्वाड की मदद लेती है जिसमे डॉग किसी वस्तु को सूंघकर आरोपी के घर तक चला जाता है या बम के सोर्स तक पहुँच जाता है।5. किसी से मोटी रकम लेकर जैंसे व्यापारी राजनेता आदि से मोटा पैसा लेकर उनके शत्रुओं/प्रतिद्वंदीयों पर मारण प्रयोग न करें। ऐंसा करने से कुछ समय तक तो आप भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त जीवन व्यतीत कर सकते हैं। पर अंत मे आपकी दुर्गति होगी। भारत मे कई बाबाओ की दुर्गति आप देख चुके हैं। जो मोटी रकम लेकर मारण प्रयोग करते थे। दुष्ट तांत्रिको का कृत्या भक्षण कर लेती है।6. उड्डीस तंत्र के अनुसार कुछ विशेष परिस्थितियों में ही मारण प्रयोग करना चाहिए। जैंसे शत्रु आपको लगातार हानि पहुँचा रहा हो। आपकी भूमि, स्त्री, धन आदि पर बलपूर्वक अधिकार कर लिया हो। आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुचाई हो। अथवा आपकी या आपके परिवार के किसी सदस्य की जान को खतरा हो।7.अत्यंत उग्र मारण प्रयोग घर मे न करें। शमशान में अथवा सिद्धपीठ या काली या कालभैरव मंदिर में जाकर करें। दक्षिण दिशा की तरफ मुख होना चाहिए।8. अत्यंत उग्र एवं प्रचंड मारण प्रयोग के बाद बलि देना अनिवार्य है। सात्विक साधक निम्बू या नारियल की बलि दें, तामसिक साधक मछली,मुर्गा या बकरे की बलि दें।

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