ज्योतिष के अनुसार शनि, राहु और केतु गृह जातक को अलग-अलग प्रकार से समयनुसार पीड़ित करते है | जब इन तीनों ग्रहों की दशा और महादशा होती है तो जातक बुरी तरह से समस्याओं से घिरने लगता है | रोगों से पीड़ित होने लगता है | व्यवसाय में हानि होने लगती है | शुत्र बनने लगते है | समाज से मान-सम्मान घटने लगता है और बहुत सी परेशानियाँ जातक के जीवन में इन ग्रहों के प्रभाव से दस्तक दे सकती है |शनि-राहु और केतु इनमें से किसी भी एक गृह या फिर दो गृह या तीनों ग्रहों के दोषों से आप एक ही समय में पीड़ित हो सकते है | इनके दोषों को दूर करने हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार के उपाय सुझावित किये जाते है | इन सभी उपायों को करने के अतिरिक्त आज हम आपको एक ऐसे उपाय के विषय में जानकारी देने वाले है जिसके प्रयोग से तीनों ग्रहों के दोष एक साथ शांत होने लगते है | तो आइये जानते है इस उपाय के विषय मेंअपने आस-पास एक ऐसी जगह देखे जहाँ पानी में मछलियाँ हो | अब आप मंगलवार की रात को एक काले कपड़ें में 150ग्राम काले तिल और 150 ग्राम काले उड़द की साबुत दाल को मिलाकर बांधकर रख ले | अब इस काले कपड़ें को रात को सोते समय अपने सिरहाने रख कर सोये | सुबह-सुबह उठकर उस स्थान पर जाएँ जहाँ आपने मछलियों को देखा है | अब इस कपड़ें में से काले तिल और उड़द की दाल को थोड़ा-थोड़ा करके पानी में डाल दे | जैसे ही मछलियों इस सामग्री को खाने लगेगी समझो आपके दोष निवारण होने लग गया है | इस प्रयोग को आप तीन मंगलवार को करें |शनि-राहु और केतु तीनों दोषों को एक साथ शांत करने का यह बहुत ही प्राचीन और परीक्षित उपा(टोटका) है | अगर आप भी इन ग्रहों से पीड़ित है तो इस उपाय को करें और लाभ उठाये |
स्तंभन तंत्र प्रयोग: स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर पर भी पड़ता है। स्तंभन के कुछ अन्य प्रयोग भी होते हैं। जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन और क्रिया स्तंभन आदि। त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे। तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है। शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है। इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिए। अग्नि स्तंभन का मंत्र निम्न है। ।। ॐ नमो अग्निरुपाय मम् शरीरे स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा ।। इस मंत्र के दस हजार जप करने से सिद्धि होती है तथा एक सौ आठ जप करने से प्रयोग सिद्ध होता है। स्तंभन से संबंधित कुछ प्रयोग निम्नलिखित है: 1....
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