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वीरभद्र तीव्र साधना मंत्र

वीरभद्र साधना-वीरभद्र, भगवान शिव के परम आज्ञाकारी हैं. उनका रूप भयंकर है, देखने में वे प्रलयाग्नि के समान, हजार भुजाओं से युक्त और मेघ के समान श्यामवर्ण हैं. सूर्य के तीन जलते हुए बड़े-बड़े नेत्र एवं विकराल दाढ़ें हैं. शिव ने उन्हें अपनी जटा से प्रकट किया था. इसलिए उनकी जटाएं साक्षात ज्वालामुखी के लावा के समान हैं. गले में नरमुंड माला वाले वीरभद्र सभी अस्त्र-शस्त्र धारण करते हैं. उनका रूप भले ही भयंकर है पर शिवस्वरूप होने के कारण वे परम कल्याणकारी हैं. शिवजी की तरह शीघ्र प्रसन्न होने वाले है.वीरभद्र उपासना तंत्र में वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना मंत्र आता है. यह एक स्वयं सिद्ध चमत्कारिक तथा तत्काल फल देने वाला मंत्र है. स्वयंसिद्ध मंत्र होने के कारण इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती. अचानक कोई बाधा आ जाए, दुर्घटना का भय हो, कोई समस्या बार-बार प्रकट होकर कष्ट देती हो, कार्यों में बाधाएं आती हों, हिंसक पशुओं का भय हो या कोई अज्ञात भय परेशान करता है तो वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना से उससे तत्काल राहत मिलती है.यह तत्काल फल देने वाला मंत्र कहा गया है.    वीरभद्र मंत्र 1-ॐ हं ठ: ठ: ठ: सैं चां ठं ठ: ठ: ठ: ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा 1. यदि पशुओं से या हिंसक जीवों से प्राणहानि का भय हो तब मंत्र के सात बार जप से निवारण हो जाता है.2. यदि मंत्र को एक हज़ार बार बिना रुके लगातार जप लिया जाए तो स्मरण शक्ति में अद्भुत चमत्कार देखा जा सकता है.3. यदि मंत्र का जप बिना रुके लगातार दस हजार बार कर लिया जाय तो त्रिकालदृष्टि यानी भूत, वर्त्तमान, भविष्य के संकेत पढ़ने की शक्ति आने लगती है.4. मंत्र का बिना रुके लगातार लक्षजप यानी एक लाख जप रुद्राक्ष की माला से करने पर खेचरत्व और भूचरत्व की प्राप्ति हो जाती है. इसके लिए लाल वस्त्र धारण करके, लाल आसन पर विराजमान होकर उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए.5. इस साधना को हंसी खेल ना समझे. न ही इसे हंसी ठहाके में प्रयास करना चाहिए. आवश्यकता पड़ने पर ही और स्वयं या किसी अन्य के कल्याण के उद्देश्य से ही होना चाहिए. किसी को परेशान करने के उद्देश्य से होने पर उल्टा फल होगा.6. महिलाओं के लिए यह वीरभद्र साधना पूर्णतः वर्जित है. महिलाएं निम्न रक्ततारा महामंत्र प्रयोग कर सकती हैं.श्री रक्ततारा तंत्रनाशक महामंत्र-रक्तवर्णकारिणी,मुण्ड मुकुटधारिणी, त्रिलोचने शिव प्रिये, भूतसंघ विहारिणीभालचंद्रिके वामे, रक्त तारिणी परे, पर तंत्र-मंत्र नाशिनी, प्रेतोच्चाटन कारिणीनमो कालाग्नि रूपिणी,ग्रह संताप हारिणि, अक्षोभ्य प्रिये तुरे, पञ्चकपाल धारिणीनमो तारे नमो तारे, श्री रक्त तारे नमो। ॐ स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं रं रं रं रं रं रं रं रं रक्तताराय हं हं हं हं हं घोरे-अघोरे वामे खं खं खं खं खं खर्परे सं सं सं सं सं सकल तन्त्राणि शोषय-शोषय सर सर सर सर सर भूतादि नाशय-नाशय स्त्रीं हुं फट।वीरभद्र तीव्र मंत्र 2-ॐ ड्रं ह्रौं बं जूं बं हूं बं स: बीर वीरभद्राय प्रस्फुर प्रज्वल आवेशय जाग्रय विध्वंसय क्रुद्धगणाय हुं

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