यदि आपके धार्मिक या परम्परागत संस्कारों में ये क्रियाएं क्षोभ उत्पन्न करती हैं या अपराधबोध से ग्रसित करती हैं, तो यह काम भैरवी साधना न करें. भैरवी अपनी पत्नी हो या पर-स्त्री साधिका उसे पूर्ण उल्लासित – मन होना चाहिए; क्योंकि बाद के चरणों में उसे ही देवी मानकर पूजा जाता है और शक्ति भी उसेक माध्यम से साधक को प्राप्त होती है। पहले सभी शक्तियाँ भैरवी को प्राप्त होती है। बिमार, दुर्बल, डरी हुई, लज्जा से भरी स्थितियाँ आधार शक्ति को ही कमजोर कर देती है। उस पर दबाब कभी मत डालें काम भैरवी साधनाओं में विजया और मदिरा का प्रयोग किया जाता है. यह उलटी साधना है। साधु-सन्यासी; जो सात्विक मार्ग के है; व्रत-उपवास, वह शाक, दूध, सत्तू एवं मन के निग्रह में विश्वास रखते है. मगर इस मार्ग में शारीरिक शक्ति को बनाये रखने के लिए और उसे उत्तेजना देने के लिए मांस, मछली, मदिरा का प्रयोग किया जाता है; पर यह आवश्यक नहीं है। शाकाहारी आहारों में भी शक्ति और सबलता के (इसमें लौह तत्व की अधिक डिमांड होती है, जो लाल रक्त करण निर्मित करते है) की अनेक गर्म सूचियाँ हैं। मदिरा के स्थान पर विजया और एक विशेष प्रकार की गुड...