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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शव साधना का पूरा सच, रह जाएंगे आप हैरान

  काली, अंधेरी आधी रात का वह समय, जब गहरी नींद में होते हैं और जीव-जंतुओं की रहस्यमयी आवाजें मन में  डर  भी पैदा करती हैं...उस समय अघोरी-तांत्रिकों द्वारा की जाती है शव को साधने की यह प्रक्रिया। हम हम सोते हैं तब जागता है पूरा श्मशान...वह श्मशान, जहां दिन के उजाले में जाने से भी रूह कांपती है...वहीं लगता है अघोरी-तांत्रिकों और आत्माओं और शवों का मेला...और होती है शव की साधना। आखिर क्या है यह शव साधना, कैसे और क्यों की जाती है...क्या होता है इस दौरान और भी कुछ रहस्यमयी और डरावने सच अघोरियों द्वारा खास तौर से श्मशान में तीन प्रकार की साधनाएं की जाती हैं जिनमें श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना शामिल हैं। प्रमुख रूप से इन साधनाओं को अघोरी प्रसिद्ध शक्तिपीठों जैसे - कामाख्या शक्तिपीठ, तारापीठ, बगुलामुखी या भैरव आदि स्थानों पर करते हैं।  इन साधनाओं को करने के अलावा संसार में इनका कोई और लक्ष्य नहीं होता और साधना के बाद या अन्य समय में ये अघोरी हिमालय के जंगलों में निवास करते हैं। इन्हें साधारण तौर पर देखा भी नहीं जा सकता ना ही ये अघोरी तांत्रिक समाज में शामिल होते हैं। परंतु   सिंहस्थ  या

महाकालभैरवाष्टकम्

  महाकालभैरवाष्टकम् अथवा तीक्ष्णदंष्ट्रकालभैरवाष्टकम् यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा शेखरंचन्द्रबिम्बम् । दं दं दं दीर्घकायं विक्रितनख मुखं चोर्ध्वरोमं करालं पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ १॥ रं रं रं रक्तवर्णं, कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं घं घं घं घोष घोषं घ घ घ घ घटितं घर्झरं घोरनादम् । कं कं कं कालपाशं द्रुक् द्रुक् दृढितं ज्वालितं कामदाहं तं तं तं दिव्यदेहं, प्रणामत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ २॥ लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घ जिह्वा करालं धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकटमुखं भास्करं भीमरूपम् । रुं रुं रुं रूण्डमालं, रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालम् नं नं नं नग्नभूषं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ३॥ वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मसारं परन्तं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवनविलयं भास्करं भीमरूपम् । चं चं चलित्वाऽचल चल चलिता चालितं भूमिचक्रं मं मं मायि रूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ४॥ शं शं शं शङ्खहस्तं, शशिकरधवलं, मोक्ष सम्पूर्ण तेजं मं मं मं मं महान्तं, कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम् । यं यं यं भूतन

तांत्रिक क्रियाओं के प्रकार एवं प्रभाव

  क्या आपने सुना है की एक महिला किसी अज्ञात से बाते कर रही है, जो हमे नही दिखाई देता। एक इंसान को चारों और सांप ही सांप दिखाई देते है, किसी को रोज सपनो मै कोई सफेद कपड़े मै दिखाई पढ़ता, कोई व्यक्ति जब तक घर से बाहर रहता खुश रहता है,लेकिन घर मे आते ही गुस्सा करने लगता है। ये बातें अजीब लगती है,आप क्या हर कोई जब तक इन हादसों का शिकार नही हो जाता तब तक इन सबको मानता नहीं है।  अक्सर ये सब हमारे कुछ पूर्व जन्म के दोष, आपकी कुंडली मै काल सर्प, श्रापित दोष, आदि के कारण होते हैं किन्तु कुछ तांत्रिक क्रिया द्वारा भी कराया जाता है । जन्म के समय जब राहू और केतु के साथ शनि की भी नकारात्मक भूमिका हो जाती है, शुभ ग्रहो के साथ जब ये ग्रह युति बना लेते है तब जिंदगी को उथल पुथल कर देते हैं। इन इंसानो पर बाहरी क्रियाओ का असर जल्दी होता है। विद्वेषण जैसी खतरनाक तांत्रिक क्रियाओं द्वारा पति-पत्नि में झगडे करवा दिए जाते हैं फिर वे ही एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। ताडन जैसी भयानक तांत्रिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति को बीमार कर दिया जाता हैं। फिर बीमारी ही पकड में नहीं आती है अथवा इलाज करवा-करवा कर थक जाते हैं

माँ विंध्यवासिनी तंत्र सिद्धि साधना

  शास्त्रों में माँ विंध्यवासिनी की रहस्यमयी तांत्रिक साधना वर्णित है। यह साधना अत्यंत गोपनीय है। किसी भी कार्य में तुरंत सफलता प्राप्ति के लिए विंध्यवासिनी साधना उपयोगी होती है।                                                                                           विनियोग  ओम् अस्य विंध्यवासिनी मन्त्रस्य विश्रवा ऋषि अनुष्टुपछंद: विंध्यवासिनी देवता मम अभिष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:। न्यास ओम विश्रवा ऋषये नम: शिरसि ।।1।। अनुष्टुप छंदसे नम: मुखे ।।2।। विंध्यवासिनी देवतायै नम: हृदि ।।3।। विनियोगाय नम: सर्वांगे ।।4।। करन्यास एहं हिं अंगुष्ठाभ्यां नम:।।1।। यक्षि-यक्षि तर्जनीभ्यां नम:।।2।। महायक्षि मध्यमाभ्यां नम: ।।3।। वटवृक्षनिवासिनी अनामिकाभ्यां नम:।।4।। शीघ्रं मे सर्वसौख्यं कनिष्ठिकाभ्यां नम:।।5।। कुरू-कुरू स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:।।6।। ध्यान अरूणचंदन वस्त्र विभूषितम। सजलतोयदतुल्यन रूरूहाम्।। स्मरकुरंगदृशं विंध्यवासिनी। क्रमुकनागलता दल पुष्कराम्।। विधि इस महत्वपूर्ण एवं अत्यंत गोपनीय साधना को भाग्यशाली साधक ही कर पाता है। अमावस्या की रात को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर सामने वि

श्री महाविपरीत प्रत्यंगिरा स्तोत्रम, शत्रु मारण

  मां प्रत्यंगिरा का भद्रकाली या महाकाली का ही विराट रूप है। मां प्रत्यंगिरा की गुप्तरूप से की गई आराधना, जप से अच्छों अच्छों के झक्के छूट जाते हैं। कितना ही बड़ा काम क्यों न हो अथवा कितना बड़ा शत्रु ही क्यों न हो, सभी का मां चुटकियों में शमन कर देती हैं।  प्रत्यक्ष शत्रु से निपटना आसान होता है किन्तु हमारे कई अप्रत्यक्ष शत्रु होते हैं जो सामने मित्रता पूर्ण व्यवहार रखते हैं किन्तु हमारे पीठ पीछे हमे नुकसान पहुंचाते हैं व हमारी छवि बिगाड़ते रहते हैं, और हमारे परिवार के सदस्यो पर अपनी शत्रुता निकालते हैं। ऐंसे शत्रुओं पर यह मारण प्रयोग करने पर सिर्फ शत्रु ही नहीं बल्कि उसके परिवार के सदस्य पर भी प्रभाव होता है। शत्रु को हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज, कैंसर, क्षय रोग, लकवा, पागलपन, विक्षिप्त बनाने, आपसी विवाद कराने, वाहन दुर्घटना, सूखी लगाना, धन हानि, व्यापार मे नुकसान पहुंचाकर बदला लेने के लिए इन तांत्रिक प्रयोगो को करें। स्तोत्रम प्रारंभ करने से पूर्व प्रथम पूज्य श्रीगणेश, भगवान शंकर पार्वती, गुरुदेव, मां सरस्वती, गायत्रीदेवी, भगवान सूर्यदेव, इष्टदेव, कुलदेव तथा कुलदेवी का ध्यान अवश्य कर लें

64 योगिनी साधना एवं सिद्धि मंत्र

  64 योगिनियों की साधना सोमवार या अमावस्या या पूर्णिमा की रात्रि से आरंभ की जाती है। साधना आरंभ करने से पहले स्नान-ध्यान आदि से निवृत होकर अपने पितृगण, इष्टदेव तथा गुरु का आशीर्वाद लें। इसके बाद गणेश मंत्र तथा गुरुमंत्र का जप किया जाता है ताकि साधना में किसी भी प्रकार का विघ्न न आएं। इसके बाद भगवान शिव की पूजा करते हुए शिवलिंग पर जल तथा अष्टगंध युक्त चावल अर्पित करें। इसके बाद आपकी पूजा आरंभ होती है। अंत में जिस योगिनी को आपको सिद्ध करना हैं उसके मंत्र की कम से कम एक माला अथवा ग्यारह माला का जाप करें। 64 योगिनियों के मंत्र इस प्रकार हैं– (1) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा। (2) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा। (3) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा। (4) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा। (5) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा। (6) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा। (7) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा। (8) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा। (9) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री

8 योगिनियों के 8 चमत्कारी मंत्र, सभी कामनाएं करते हैं पूर्ण

  योगिनियों की सिद्धि के बारे में केवल एक बात ही उनकी महत्ता दर्शाती है कि धनपति कुबेर उनकी कृपा से ही धनाधिपति हुए थे। इनको प्रसन्न करने से राज्य तक प्राप्त किया जा सकता है। ये भी मुख्यत: 8 होती हैं तथा मां, बहन तथा भार्या के रूप में सर्वस्व देती हैं। इनकी साधना सावधानी भी मांगती है। पत्नी के रूप में साधना करने से अपनी पत्नी का सुख नहीं रहता है। अतिरेक करने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है। ये योगिनियां निम्नलिखित हैं- (1) सुर-सुंदरी योगिनी-  अत्यंत सुंदर शरीर सौष्ठव अत्यंत दर्शनीय होता है। 1 मास तक साधना की जाती है। प्रसन्न होने पर सामने आती हैं तथा माता, बहन या पत्नी कहकर संबोधन करें। राज्य, स्वर्ण, दिव्यालंकार तथा दिव्य कन्याएं तक लाकर देती हैं। सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं। अन्य स्त्रियों पर आसक्त साधक को समूल नष्ट करती हैं। > मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा।' (2) मनोहरा योगिनी-   विचित्र वेशभूषा वाली अत्यंत सुंदर, शरीर से सुगंध निकलती हुई मास भर साधना करने पर प्रसन्न होकर प्रतिदिन साधक को स्वर्ण मुद्राएं प्रदान करती हैं। मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा।' >

काल भैरव क्रूर नहीं, बड़े दयालु-कृपालु

  काल भैरव का नाम सुनते ही एक अजीब-सी भय मिश्रित अनुभूति होती है। एक हाथ में ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर और अन्य तीनों हाथों में खप्पर, त्रिशूल और डमरू लिए भगवान शिव के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है, लेकिन ये बड़े ही दयालु-कृपालु और जन का कल्याण करने वाले हैं। भैरव शब्द का अर्थ ही होता है भरण-पोषण करने वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में भी विस्तारपूर्वक की गई है। शास्त्रों के अनुसार कलियुग में काल भैरव की उपासना शीघ्र फल देने वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और तामसी तीनों विधियों में उपासना की जाती है।इनकी पूजा में उड़द और उड़द से बनी वस्तुएं जैसे इमरती, दही बड़े आदि शामिल होते हैं। चमेली के फूल इन्हें विशेष प्रिय हैं। पहले भैरव को बकरे की बलि देने की प्रथा थी, जिस कारण मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन अब परिवर्तन आ चुका है। अब बलि की प्रथा बंद हो गई है।शराब इस लिए चढ़ाई जाती है क्योंकि मान्यता है कि भैरव को शराब चढ़ाकर बड़ी आसानी से