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श्री महाविपरीत प्रत्यंगिरा स्तोत्रम, शत्रु मारण

 मां प्रत्यंगिरा का भद्रकाली या महाकाली का ही विराट रूप है। मां प्रत्यंगिरा की गुप्तरूप से की गई आराधना, जप से अच्छों अच्छों के झक्के छूट जाते हैं। कितना ही बड़ा काम क्यों न हो अथवा कितना बड़ा शत्रु ही क्यों न हो, सभी का मां चुटकियों में शमन कर देती हैं। प्रत्यक्ष शत्रु से निपटना आसान होता है किन्तु हमारे कई अप्रत्यक्ष शत्रु होते हैं जो सामने मित्रता पूर्ण व्यवहार रखते हैं किन्तु हमारे पीठ पीछे हमे नुकसान पहुंचाते हैं व हमारी छवि बिगाड़ते रहते हैं, और हमारे परिवार के सदस्यो पर अपनी शत्रुता निकालते हैं। ऐंसे शत्रुओं पर यह मारण प्रयोग करने पर सिर्फ शत्रु ही नहीं बल्कि उसके परिवार के सदस्य पर भी प्रभाव होता है। शत्रु को हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज, कैंसर, क्षय रोग, लकवा, पागलपन, विक्षिप्त बनाने, आपसी विवाद कराने, वाहन दुर्घटना, सूखी लगाना, धन हानि, व्यापार मे नुकसान पहुंचाकर बदला लेने के लिए इन तांत्रिक प्रयोगो को करें। स्तोत्रम प्रारंभ करने से पूर्व प्रथम पूज्य श्रीगणेश, भगवान शंकर पार्वती, गुरुदेव, मां सरस्वती, गायत्रीदेवी, भगवान सूर्यदेव, इष्टदेव, कुलदेव तथा कुलदेवी का ध्यान अवश्य कर लें। यह स्तोत्र रात्रि 11 बजे से 2 के मध्य किया जाए तो तत्काल फल देता है।श्री महाविपरीतप्रत्यंगिरा स्तोत्रम

नमस्कार मन्त्रः श्रीमहा विपरीत प्रत्यंगिरा काल्यै नमः।

पूर्व पीठिका महेश्वर उवाच

श्रृणु देवि, महा विद्यां, सर्व सिद्धि प्रदायिकां। यस्याः विज्ञान मात्रेण, शत्रु वर्गाः लयं गताः।।
विपरीता महा काली, सर्व भूत भयंकरी। यस्याः प्रसंग मात्रेण, कम्पते च जगत् त्रयम्।।
न च शान्ति प्रदः कोऽपि, परमेशो न चैव हि। देवताः प्रलयं यान्ति, किं पुनर्मानवादयः।।
पठनाद्धारणाद्देवि, सृष्टि संहारको भवेत्। अभिचारादिकाः सर्वेया या साध्य तमाः क्रियाः।।
स्मरेणन महा काल्याः, नाशं जग्मुः सुरेश्वरि, सिद्धि विद्या महा काली, परत्रेह च मोदते।।
सप्त लक्ष महा विद्याः, गोपिताः परमेश्वरि, महा काली महा देवी, शंकरस्येष्ट देवता।।
यस्याः प्रसाद मात्रेण, पर ब्रह्म महेश्वरः। कृत्रिमादि विषघ्ना सा, प्रलयाग्नि निवर्तिका।।

   त्वद् भक्त दशंनाद् देवि, कम्पमानो महेश्वरः। यस्य निग्रह मात्रेण, पृथिवी प्रलयं गता।।  दश विद्याः सदा ज्ञाता, दश द्वार समाश्रिताः। प्राची द्वारे भुवनेशी, दक्षिणे कालिका तथा।। नाक्षत्री पश्चिमे द्वारे, उत्तरे भैरवी तथा। ऐशान्यां सततं देवि, प्रचण्ड चण्डिका तथा।।
आग्नेय्यां बगला देवी, रक्षः कोणे मतंगिनी, धूमावती च वायव्वे, अध ऊर्ध्वे च सुन्दरी।।
सम्मुखे षोडशी देवी, सदा जाग्रत् स्वरुपिणी। वाम भागे च देवेशि, महा त्रिपुर सुन्दरी।।
अंश रुपेण देवेशि, सर्वाः देव्यः प्रतिष्ठिताः। महा प्रत्यंगिरा सैव, विपरीता तथोदिता।।
महा विष्णुर्यथा ज्ञातो, भुवनानां महेश्वरि। कर्ता पाता च संहर्ता, सत्यं सत्यं वदामि ते।।
भुक्ति मुक्ति प्रदा देवी, महा काली सुनिश्चिता। वेद शास्त्र प्रगुप्ता सा, न दृश्या देवतैरपि।।
अनन्त कोटि सूर्याभा, सर्व शत्रु भयंकरी। ध्यान ज्ञान विहीना सा, वेदान्तामृत वर्षिणी।।
सर्व मन्त्र मयी काली, निगमागम कारिणी। निगमागम कारी सा, महा प्रलय कारिणी।।‍
यस्या अंग घर्म लवा, सा गंगा परमोदिता। महा काली नगेन्द्रस्था, विपरीता महोदयाः।।
यत्र यत्र प्रत्यंगिरा, तत्र काली प्रतिष्ठिता। सदा स्मरण मात्रेण, शत्रूणां निगमागमाः।।
नाशं जग्मुः नाशमायुः सत्यं सत्यं वदामि ते। पर ब्रह्म महा देवि, पूजनैरीश्वरो भवेत्।।
शिव कोटि समो योगी, विष्णु कोटि समः स्थिरः। सर्वैराराधिता सा वै, भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी।।
गुरु मन्त्र शतं जप्त्वा, श्वेत सर्षपमानयेत्। दश दिशो विकिरेत् तान्, सर्व शत्रु क्षयाप्तये।।
भक्त रक्षां शत्रु नाशं, सा करोति च तत्क्षणात्। ततस्तु पाठ मात्रेण, शत्रुणां मारणं भवेत्।। गुरु मन्त्रः

ॐ हूं स्फारय स्फारय, मारय मारय, शत्रु वर्गान् नाशय नाशय स्वाहा   [100 बार करना है 108 बार नहीं ]

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