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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पंचांगुली साधना

पंचांगुली साधना गुरु की आज्ञा, गुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः प्रथम गुरु पूजन, और मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिए, यही शिष्य या साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए. भाइयो बहनों आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ही साधना की सफलता हेतु भी शुभकामनाएं------ ये साधना गुरु द्वारा प्रदत्त है, कई लोगों ने किया, और इसके आश्चर्यजनक परिणाम भी प्राप्त किया, और मेरा भी स्वयं का अनुभूत है, भाइयो बहनों इसमें एक शंका लोगों को रहती है और वो है की यंत्र, तो इसका सलुशन भी है किन्तु इस ‘शुक्ल पक्ष की पंचमी, नवरात्री की पंचमी’ अतः इसका लाभ तो उठाना ही चाहिए, क्योंकि इस साधना का आगाज इस दिन किया तो निश्चित ही आगे आने वाले समय में एक बार में ही परिणाम भी प्रत्यक्ष होंगे. इस दिन की जाने वाली साधना में कोई सामग्री या विशेस विधान की आवश्यकता नहीं है मात्र पीले वस्त्र, पीला आसन उत्तर दिशा और आदि शक्ति का चित्र, और गुरु चित्र तो अनिवार्य है ही....... रात १० बजे स्नान करे और उत्तर दिशा की ओर मुह करके बैठ जाएँ, गुरु पूजन गणेश और भ

इस तरह से करें पंचांगुली साधना, भविष्य को देखने की शक्ति होती है जागृत

कई बार घटने वाली घटना का अहसास पहले ही हो जाता है। कुछ लोग तो भविष्‍य के बारे में थोड़ा बहुत बता भी देते हैं, जो लगभग सही साबित होता है। आपके मन में भी ये सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर कैसे इन्हें भविष्‍य के बारे में पता चल जाता है। इसका एक कारण साधना भी होती है, जिसमें व्यक्ति का मन एकाग्र होता है। इन्हीं साधना में से एक है पंचांगुली साधना, जिसकी पूरी होने पर व्य‍क्ति को भविष्य का आभास होता है। पंचांगुली साधना को त्रिकालदर्शी साधना भी कहा जाता है, जिसके 8 तत्व होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस साधना को सिद्ध करने वाला व्यक्ति भूतकाल से लेकर भविष्यकाल तक देख लेता है। इस साधना को शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी और पूर्णमासी को ही करें। ब्रह्म मुहूर्त में एकांत स्‍थल पर सात दिन पर इस साधना को करें। पंचांगुली यंत्र व चिन्ह और स्फटिक माला, जो कि प्रतिष्ठायुक्त हो। पीले वस्‍त्रों में पीले आसन पर पूर्व दिशा की तरफ मुख बैठ जाएं। ध्यान रखें कि आपको गुरु चादर भी ओढ़ना है। गणपति का ध्यान करके  पंचोपचार करके पूजर संपन्न करें और गुरु माला से गुरु मंत्र की एक माला का जाप करें। पंचांगुली साधना..

परी साधना के बारे में सब कुछ जानें

हर कोई नहीं जानता कि परी साधना क्यों की जाती है।  वास्तव में, यदि कोई नकली तांत्रिक आपके लिए साधना करने का दावा करता है, तो हम आपको सुझाव देंगे कि उसके द्वारा मूर्खता न करें।  सबसे पहले, स्वर्ग में शांति से रहने वाले विभिन्न प्रकार के परी हैं, जो भगवान इंद्र का राज्य है।  आपके लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि अपना काम पूरा करने के लिए आपको कौन-सी पारी की आवश्यकता है।  चाहे आप  जिन परी  या  नील परी चाहते हैं,  आपको बस इस बारे में सुनिश्चित होना होगा कि वह आपके लिए क्या कर सकता है और आप भौतिक और आध्यात्मिक लाभ कैसे प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे, आपको यह साधना स्वयं करने की आवश्यकता है ताकि परी को पता चले कि वास्तव में आपके दिल की इच्छा क्या है और वह कैसे पूरा कर सकती है।  आपके दिल में विभिन्न इच्छाएं हो सकती हैं;  एक समय में केवल एक इच्छा के लिए पूछना सुनिश्चित करें ताकि आप केवल एक चीज में अधिक ऊर्जा डाल सकें।  यही पराई साधना काम करती है।  एक बार जब आप एक चीज प्राप्त करते हैं, या आप एक विशिष्ट इच्छा प्राप्त करते हैं, तो आप एक और इच्छा के लिए फिर से साधना कर सकते हैं ... और फिर एक और! अर्थ: 

नक्षत्रानुसार रोगोपचार.

ग्रह और नक्षत्रों से होने वाले रोग और उनके उपाय. वैदिक ज्योतिषी के अनुसार नक्षत्र पंचांग का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है। भारतीय ज्योतिषी में नक्षत्र को चन्द्र महल भी कहा जाता है। लोग ज्योतिषीय विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणियों के लिए नक्षत्र की अवधारणा का उपयोग करते हैं। शास्त्रों में नक्षत्रों की कुल संख्या 27 बताई गयी है। आज हम आपको इसकी जानकारी दे रहे हैं। ज्योतिषानुसार जिस प्रकार ग्रहों के खराब होने पर उनका बुरा प्रभाव देखने को मिलता है उसी प्रकार नक्षत्रों से भी कई रोगों कि गणना शास्त्रों में दी गई है आज हम आपको सभी नक्षत्रों से होने वाले रोग और उन रोगों के उपायों की संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं यदि आपको अपना जन्म नक्षत्र पता है तो आप इस जानकारी को पढ़ें। (नोट : यह जानकारी जन्म नक्षत्र के आधार पर ही दी गई है) १. अश्विनी नक्षत्र : अश्विनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट होते हैं। उपाय : अश्विनी नक्षत्र के देवता कुमार हैं। उनका पूजन और दान पुण्य, दीन दुखियों की सेवा से लाभ होता है। २. भरणी नक्षत्र : भरणी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जा

यंत्र प्राण-प्रतिष्ठा विधि

यहा दो प्रकार का यंत्र प्राण-प्रतिष्ठा विधि दे रहा हु 1) साबर 2) तान्त्रोक्त यंत्र प्राण-प्रतिष्ठा विधि श्री गणेश जी  और  गुरुमंत्र का जाप करले 1)साबर यंत्र प्राण-प्रतिष्ठा विधि निम्न मंत्र का 108 बार जाप करके लाल रंग की अक्षत चढ़ाये॰ सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । ॐ सोहं हंसाय विदमहे प्राण-प्राणाय धीमही तन्नो ज्योति स्वरूप प्रचोदयात । श्री नाथजी गुरुजी को आदेश । आदेश । अब  निम्न मंत्र को 108 बार जाप करते हुये यंत्र  को स्पर्श करो , सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । ॐ सों ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शम षम सं हं स: जती साबर साधना सिद्धि यंत्रस्य प्राण: इह ज्योति स्वरूप जपा-अजपा हंसा: प्राण प्राणाहा:। ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शम षम सं हं स: जती साबर साधना सिद्धि यंत्र घट पिंडमे शिव-शक्ति की माया । जीव रूप मे शिव की माया । जीव रूप मे शिव गोरक्षनाथ कहाया । ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शम षम सं हं स: जती साबर साधना सिद्धि यंत्र दस इंद्रियों की काया । पांच तत का किया पसारा । अमर योगी अमर काया । अक्षय योगी सबसे न्यारा । श्री नाथ जी निखिलेश्वरानंद

कुंडलिनी उर्जा का सत्य

कुंडलिनी के बारे में आज आध्यत्म और विज्ञान दोनों ही खोज कर रहे हैं,यह एक आकर्षण का विषय हो गया है किन्तु बिना सत्य यह एक कल्पना और अंधविश्वास का विषय ही है। आज कुंडलिनी ध्यान पर कितने शिबिर और योग और हीलिंग सेंटर चल रहे पर क्या कुंडलिनी के बारे में जो सत्य परोसा गया है वो कितना सत्य है ? क्यूंकि बिना अभ्यास सीधा ही कुंडलिनी जागरण में प्रवेश करना तबाही का कारण हो सकता है। गुरु परम्परा या सिद्ध कौलमार्ग को समझे बिना मूर्खतावश कुंडलिनी जाग्रत करना साधक का अधोपतन करवाता है। कुंडलिनी विषय गहरा और ध्यानात्मक विषय है। यह एक दिन के शिबिर या कुछ महीनो की प्राणायाम की प्रेक्टिस से सिद्ध नहीं होता। प्राणायाम केवल मस्तिष्क और ब्रह्मरंध्र शरीर के सोये हुए कोषों को चार्ज करता है। इससे कुंडलिनी का वहन 1 प्रतिशत भी नहीं होता। यह मिथ्या धारणा फेली हुई है। इस पर न जाने कितने लोग अपना बिज़नेस बना कर बैठ गए हैं। बिना सिद्धि को प्राप्त किये साधना में कुंडलिनी पर काबू पाना सम्भव नहीं है। अब यह कुंडलिनी है क्या ? वह समझना है और उसके आयाम कितने है ? यह 16 आयाम और 7 पथ पर चल कर अपने शिव को मिलती है। कुंड

कुण्डलिनी जागरण

परमपिता का अर्द्धनारीश्वर भाग शक्ति कहलाता है यह ईश्वर की पराशक्ति है  ( प्रबल लौकिक ऊर्जा शक्ति)। जिसे हम राधा ,  सीता ,  दुर्गा या काली आदि के नाम   से पूजते हैं। इसे ही भारतीय योगदर्शन में कुण्डलिनी कहा गया है। यह दिव्य   शक्ति मानव शरीर में मूलाधार में (रीढ की हड्डी का निचला हिस्सा)   सुषुप्तावस्था में रहती है। यह रीढ की हड्डी के आखिरी हिस्से के चारों ओर   साढे तीन आँटे लगाकर कुण्डली मारे सोए हुए सांप की तरह सोई रहती है। इसीलिए यह कुण्डलिनी कहलाती है। जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है तो यह सहस्त्रार में स्थित अपने स्वामी से   मिलने के लिये ऊपर की ओर उठती है। जागृत कुण्डलिनी पर समर्थ सद्गुरू का   पूर्ण नियंत्रण होता है ,  वे ही उसके वेग को अनुशासित एवं नियंत्रित करते   हैं। गुरुकृपा रूपी शक्तिपात दीक्षा से कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर ६   चक्रों का भेदन करती हुई सहस्त्रार तक पहुँचती है। कुण्डलिनी द्वारा जो योग   करवाया जाता है उससे मनुष्य के सभी अंग पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं। साधक का   जो अंग बीमार या कमजोर होता है मात्र उसी की यौगिक क्रियायें ध्यानावस्था   में होती हैं एवं कुण्डलिनी शक्