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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुप्त नवरात्रि के दिनों में तांत्रिक साधना

 जाने कैसे किये जाते है गुप्त नवरात्रि के दिनों में तांत्रिक साधना जिससे कोई भी किसी भी कार्य को सफल बना सकता है| अधिकतर लोग वर्ष में आने वाली चैत्र नवरात्रा और आश्विन या शारदीय, दो ही नवरात्रों के बारे में जानते हैं। लेकिन, बहुत कम लोगों को पता होगा कि इसके अतिरिक्त और भी दो नवरात्रा होती हैं जिन्हें गुप्त नवरात्रा कहा जाता है। इन दिनों देवी मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है तथा विभिन्न साधनाए भी उन्हें प्रसन्न करने के लिए की जाती है। तंत्र साधना के अनुसार गुप्त नवरात्रा में अपनाए गए प्रयोग विशेष फलदायक होते हैं और उनका फल भी जल्दी ही प्राप्त किया जा सकता है। जैसा कि गुप्त शब्द से ही विदित होता है कि यह नवरात्रा गुप्त होती है, अतः इस समय किए गए सभी उपाय भी गुप्त ही होने चाहिए।गुप्त एंव काली शक्तियों को प्राप्त करने हेतु यह श्रेष्ठ समय है और इस समय के सदुपयोग के लिए आपके लिए पेश है गुप्त नवरात्रि के तांत्रिक उपाय टोटके–१) तंत्र-मंत्र आरम्भ करने के पहले आप एक कलश की स्थापना करे मां देवी का नाम लेते हुए। देवी मां की मूर्ति को सिंदूर चढ़ाएं, धूप दीप करे, लाल फूल अर्पण करे

भूत प्रेत पिशाच वशीकरण साधना मंत्र

भूत प्रेत पिशाच वशीकरण साधना मंत्र, आधुनिकता के इस दौर में भी भूत प्रेत, पिशाच, जिन्न और बेताल की अदृश्य शक्तियों के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। यह सदियों से इंसान के जीवन में किसी न किसी रूप में बना रहा है। इसका उपयोग वशीकरण के लिए होता आया है। चाहे वह वशीकरण स्त्री-पुरुष के निजी संबंधों में सुधार को लेकर हो, या फिर दूसरे किस्म की बाधाओं को दूर करने के लिए हो। भूत प्रेत पिशाच वशीकरण साधना मंत्र हिदूं और मुस्लिम तंत्र विद्या में इसके मंत्र साधना के कई उपाए बताए गए हैं। वैदिक अनुष्ठान हों या फिर तंत्र-मंत्र की कठिन साधनाएं, उनके जरिए भूत प्रेत या पिशाच की सम्मोहन शक्ति हासिल की जाती है। विभिन्न तरह की साधनाओं में परी साधना, कर्ण पिशाचिनी साधना, किंकरी साधना, बेताल साधना, वीर साधना, डाकिनी साधना मुख्य हैं, जिनके बताए गए आवश्यक विधान-विधान इस प्रकार हैं साधना का विशेष स्थान एकांत और साफ-सुथरा होना चाहिए। गुरु के बगैर साधना अर्थहीन समझा जाता है, इसलिए उनके दिशा-निर्देशें का पालन करते हुए साधना किया जाना चाहिए। साधना में ब्रह्मचर्य का पालन बहुत जरूरी है, तथा

त्राटक साधना सिद्धि

त्राटक साधना सिद्धि: भटकता हुआ या कहें विचलित मन मानसिक एकाग्रता को भंग कर देता है। यह न केवल व्यक्ति के बोध की अवस्था को प्रभावित करता है, बल्कि उसकी चेतना में अस्थिरता आने से आंतरिक शक्तियां कमजोर पड़ जाती हैं। आध्यात्म और धार्मिक अनुष्ठान के जरिए महत्वपूर्ण तरीका ‘त्राटक’ की सिद्धि और साधना के द्वारा इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। यदि कुछ नियमों का पालन करते हुए शास्त्रों में बताए गए प्रयोग किए जाएं तो इसकी सिद्धि संभव है। त्राटक क्या है? ‘त्रि’ और ‘टकटकी बंधने’ से मिलकर बना शब्द त्राटक वास्तव में त्र्याटक है, जिसके विश्लेषण में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु पर अपनी नजर और मन को बांध लेता है, तो वह क्रिया त्राटक कहलाती है। उस वस्तु को कुछ समय तक देखने पर द्वाटक और उसे लगातार लंबे समय तक देखते रहना ही त्राटक है। इसके लिए दृष्टि की शक्ति को जाग्रत करते हुए मजबूत बनानी होती है। यह क्रिया हठ योग के अंतरगत आती है। यह कहें कि त्राटक से किसी वस्तु को अपलक देखते रहने की अद्भुत शक्ति हासिल होती है। ऐसी स्थिति में एकाग्रता आती है और मन का भटकाव नहीं होने पाता है। त्राटक साधन

अमावस्या वाली रात तंत्र साधना

अमावस्या वाली रात तंत्र साधना में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है | इस दिन तांत्रिक क्रियाओं के सिद्ध योगी विभिन्न क्रियाओं का लाभ उठाते हैं | इसके अलावा इस दिन कई तरह के टोटके भी किए जाते हैं  जो विभिन्न समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होते हैं | चलिए.. आप भी जाने हमारे साथ अमावस्या की रात तंत्र साधना/टोटक/उपाय| अमावस्या की रात तंत्र साधना टोटके अमावस्या की रात तंत्र साधना तांत्रिक क्रिया-कलापों के क्षेत्र में अमावस्या  विशेष महत्वपूर्ण है | यह अमावस्या अगर शनिवार या किसी ग्रहण वाले दिन पड़ती है तो तंत्र क्रियाओं के लिए सोने में सुहागा | नीचे दिए गए प्रयोग को किसी भी अमावस्या वाले दिन करें और अपनी हर प्रकार की समस्या से निदान पाएं | विधि– किसी भी अमावस्या वाले दिन अर्ध रात्रि को श्मशान में जाए निम्नलिखित सामग्री लेकर — लाल सिंदूर एक छोटी शराब की बोतल मोमबत्ती ५ की संख्या में एकदम ताजा नींबू ५ नग तेज धार वाला चाकू एक बड़ा दीपक सरसों का तेल श्मशान घाट में जाकर सबसे पहसे श्मशान भूमि को प्रणाम करें | अब किसी भी स्थान पर बैठ जाए तथा दीपक में सरसों का तेल डालकर जलाएं और पां

भुत-प्रेत सिद्धी

भुत-प्रेत सिद्धी (प्रत्यक्षिकरण) जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है.अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है.जीवन न अतीत है और न भविष्य.वह सदा वर्तमान है.जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है. आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं. भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है.इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी,डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है. भूत प्रेत कैसे बनते हैं:- इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है. सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है. इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है.जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के

मां कामाख्या देवी वशीकरण मंत्र अघोरी बाबा

  जाने करे किसी को वश में कामाख्या वशीकरण मंत्र साधना टोटके का प्रयोग करके| सबसे पहले तो हम आपको माँ कामाख्या के बारे मे जरा बता दे। देवी सती के बारे मे तो आप सब जानते ही होगे। यह कहाँ जाता है कि जब भगवान शिव देवी सती के आत्मदाह के बाद उनके मृत शरीर को लेकर भटक रहें थे, तो भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उनके शरीर को काटना शुरू कर दिया था। जिसके कारण देवी सती के शरीर के हिस्से पूरे देश के अलग –अलग जगहों मे गिर गए और वो जहां भी गिरे वहाँ उनका एक शक्ति पीठ तैयार हो गया। भगवान विष्णु के चक्र से उनके शरीर के कुल 51 हिस्से हुए थे। तो इस प्रकार उन 51 शक्ति पीठ मे से यह भी एक शक्ति पीठ है, जहां उनकी योनि गिरी थी। यह जगह आसाम राज्य मे स्थित है। जब देवी सती रजस्वला होती है, उस मौके पर यहाँ अंबुवाची पर्व मनाया जाता है। जिसमे हिस्सा लेने के लिए देश के कोने-कोने से साधू, भक्त व आम लोग आते है। इन 3 दिनों मे जल के जगह रक्त बहता है। इस रक्त को सफ़ेद रंग के कपड़े से ढक दिया जाता है व बाद मे भक्तों को इसी कपड़े का टुकड़े प्रसाद के रूप मे दिया जाता है। साथ मे यह दिन तांत्रिक साधना के लिए भी बड़े महत्वपूर्ण माने

गुप्त नवरात्रि के तांत्रिक उपाय टोटके साधना

  जाने कैसे किये जाते है गुप्त नवरात्रि के दिनों में तांत्रिक साधना जिससे कोई भी किसी भी कार्य को सफल बना सकता है|  अधिकतर लोग वर्ष में आने वाली चैत्र नवरात्रा और आश्विन या शारदीय, दो ही नवरात्रों के बारे में जानते हैं। लेकिन, बहुत कम लोगों को पता होगा कि इसके अतिरिक्त और भी दो नवरात्रा होती हैं जिन्हें गुप्त नवरात्रा कहा जाता है। इन दिनों देवी मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है तथा विभिन्न साधनाए भी उन्हें प्रसन्न करने के लिए की जाती है। तंत्र साधना के अनुसार गुप्त नवरात्रा में अपनाए गए प्रयोग विशेष फलदायक होते हैं और उनका फल भी जल्दी ही प्राप्त किया जा सकता है। जैसा कि गुप्त शब्द से ही विदित होता है कि यह नवरात्रा गुप्त होती है, अतः इस समय किए गए सभी उपाय भी गुप्त ही होने चाहिए। गुप्त एंव काली शक्तियों को प्राप्त करने हेतु यह श्रेष्ठ समय है और इस समय के सदुपयोग के लिए आपके लिए पेश है गुप्त नवरात्रि के तांत्रिक उपाय टोटके– १) तंत्र-मंत्र आरम्भ करने के पहले आप एक कलश की स्थापना करे मां देवी का नाम लेते हुए। देवी मां की मूर्ति को सिंदूर चढ़ाएं, धूप दीप करे, लाल फूल अर्पण

चमगादड़ के वशीकरण तांत्रिक टोटके

  कोई भी चमगादड़ का प्रयोग कई प्रकार के वशीकरण तांत्रिक टोटके द्वारा अपने कार्य की सिद्धि कर सकता है|चमगादड़ एक ऐसा  पंछी है जो देखने मे बेशक सुंदर न हो और न ही किसी भी प्रकार से आकर्षक हो। बहुत से लोग इसे अशुभ भी मानते है। पर कहते है ना कि यहाँ हर एक चीज़ की अपनी कीमत होती है। जी हाँ दोस्तों चमगादड़ जैसे पंछी की भी एक खासियत यह है कि वशीकरण तांत्रिक टोटकों मे इसका इस्तेमाल बड़ा कारगर माना जाता है। तो चलिए जानते है ऐसे कुछ टोटके जिनको सफल करने मे यह चमगादड़ मददगार है। अगर कोई व्यक्ति आपको बड़ा परेशान कर रहा है या वो पूर्ण रूप से शत्रुता निभाने पर आ चुका है तो ऐसे मे हम आपको एक ऐसा टोटका बताएँगे जिसे शत्रु मरण टोटका कहां जाता है। जी हाँ जिसके प्रयोग से आपके शत्रु की मृत्यु तक हो जाती है। तो इसलिए बहुत ध्यान रखे की आपसी लड़ाई-झगड़ों को बातों के माध्यम से सुलझा ले ताकि स्थिति हद से ज्यादा बिगड़ न जाए। तो चलिए जानते है वो उपाय। जिसे करने के लिए आपको एक चमगादड़ चाहिए होगी। चमगादड़ मिल जाने के बाद उसे मार कर आप उसकी हड्डी निकाल ले। बाकी का मरा शरीर वही दफ़न कर दे जहां से वो आपको मिली है। अब घर लाकर हड्ड

परकाया प्रवेश सिद्धि योगा, जानिए

अनुशासन पर्व’ में ही कथा आती है कि एक बार इन्द्र किसी कारण वश ऋषि देवशर्मा पर कुपित हो गये। उन्होंने क्रोधवश ऋषि की पत्नी से बदला लेने का निश्चय किया। देवशर्मा का शिष्य ‘विपुल’ योग साधनाओं में निष्णात और सिद्ध था। उसे योग दृष्टि से यह मालूम हो गया कि मायावी इन्द्र, गुरु पत्नी से बदला लेने वाले हैं। ‘विपुल’ ने सूक्ष्म शरीर से गुरु पत्नी के शरीर में उपस्थित होकर इन्द्र के हाथों से उन्हें बचाया। पातंजलि योग दर्शन’ में सूक्ष्म शरीर से आकाश गमन, एक ही समय में अनेकों शरीर धारण, परकाया प्रवेश जैसी अनेकों योग विभूतियों का वर्णन है।  मरने के बाद सूक्ष्म शरीर जब स्थूल शरीर को छोड़कर गमन करता है तो उसके साथ अन्य सूक्ष्म परमाणु कहिए या कर्म भी गमन करते हैं जो उनके परिमाप के अनुसार अगले जन्म में रिफ्लेक्ट होते हैं, जैसे तिल, मस्सा, गोली का निशान, चाकू का निशान, आचार-विचार, संस्कार आदि। इस सूक्ष्म शरीर को मरने से पहले ही जाग्रत कर उसमें स्थिति हो जाने वाला व्यक्ति ही परकाय प्रवेश सिद्धि योगा में पारंगत हो सकता है। सबसे बड़ा सवाल यह कि खुद के शरीर पर आपका कितना कंट्रोल है? योग अनुसार जब तक आप खुद के

डाकिनी तंत्र

डाकिनी तंत्र को अनुसार मूलाधार को चारों रक्तिम दल चार देवियो के प्रतीक है जो मूलाधार की देवियां मानी जाती है । इनमे शौर्य पराक्रम, आक्रामक, प्रवृत्ति, भौतिक शक्ति, शत्रुदमन, क्रियाशीलता, भुभुक्षा, आदि गुण है। इन दलो पर उन देवियों के बीजमंत्र लिखे हुए है। इस ध्वनि के विशेष सस्वर पाठ से या मानसिक पाठ से इन्हें ध्यान लगाकर उद्वेलित किया जा सकता है, इससे ये देवियाँ जाग्रत हो जाती है इससे साधक मे इन गुणों की तीव्रता उत्पन्न हो जाती है पीले रंग का धरातल भोग का भौतिकवाद है । यह लक्ष्मी का प्रतीक है । धन, ऐश्वर्य, भोग, भूमि, अधिकार आदि इनकी प्रवृत्तियां है। यहां से वह शक्ति उद् भव होती है, जो भोग को भौतिक रूप की प्राप्ति से लिए क्रियाशील होती है । त्रिभुज की तीनों भुजाएँ त्रिपुर भैरवी या त्रिपुरसुन्दरी है, अर्थात कामनां, तृष्णा और भोगेेच्छा! ये हमेशा जवान रहती है इसलिए इन्हें त्रिपुरसुन्दरी कहा जाताहै । त्रिकोण के मध्य मे डाकिनी का निवास होता है । जिसे रक्तवर्ण नेत्रों वाली यानि तामसी पशुजनों, के मन मे भय उत्पन्न करने वाली (अर्थात पशु भाव वालो के मन मे) दाहिने हाथ मे शुल्क और खडग तथा बाये

दिव्य दृष्टि (श्रीहनुमान)

दिव्य दृष्टि (श्रीहनुमान) साधना- यह साधना अत्यंत दुर्लभ और प्राचीन है।इस साधना के माध्यम से साधक किसी भी मृत आत्मा,भूत प्रेत आदि इतरयोनियों को आज्ञा चक्र से देख सकता है,अनुभव कर सकता है,उनसे मानसिक रूप से वार्तालाप कर सकता है। इस साधना का सम्बंध आज्ञा चक्र से होता है। साधक हनुमानजी की इस दिव्य दृष्टि साधना को सिद्ध करने के बाद आंखे बंद करकेआज्ञा चक्र पर ध्यान केंद्रित करके जब मानसिक रूप से अपने आसपास की आत्माओं को बुलाता है तो यदि आत्मा उस समय वहां उपस्थित होगी तो तुरंत साधक के आज्ञा चक्र में प्रकट होगी । सभी साधको को अलग अलग रूपो में आत्मायें दिखाई देती हैं जैसे एक ही आत्मा किसी साधक को काली परछाई के रूप में दिखेगी तो किसी को पूर्ण वस्त्र पहने हुये। जिन साधको का आज्ञा चक्र विकसित नही होता है और वे खुली आँखों से आत्माओं जैसे अप्सरा,कर्णपिशाचीनी,परी, जिन्न, प्रेत,यक्षिणी आदि को देखने की जिजीविषा रखते है तो ऐसे साधको की स्थिति मृगमरीचिका की तरह होती है,हिरण की कस्तूरी की तरह होती है। ऐसे साधको को साधना के बड़े बड़े अनुभव होते है किंतु न तो देवी देवता आदि उनको आज्ञा चक्र में दर्शन देते है औ

ब्रह्मचक्र

ब्रह्मचक्र -महाशिवरात्रि के इस पर्व पर लगभग 108 ब्रह्मचक्र को तैयार किया जायेगा। इस सुरक्षा चक्र में काली देवी लक्ष्मी देवी सरस्वती देवी,त्रिदेव शक्ति ब्रह्मा विष्णु महेश को मन्त्र अनुष्ठान के माध्यम से चक्र में सभी शक्तियो को प्रवेश कराकर सिद्ध ब्रह्मचक्र का निर्माण किया जाता है। इस चक्र में भूत दाना,प्रेतदाना,चुडेल दाना ,आदि शक्तियो से सिद्ध किया जाता है। सिद्ध होने के बाद चक्र जाग्रत अवस्था में आ जाता है जिसे गले में काले धागे में धारण किया जाता है। ब्रह्मचक्र धारणकर्ता की पर्याप्त सुरक्षा होती है।उसको कोई भी वाह्य शक्ति नुकसान नही कर सकती है। भूत,प्रेत,भटकती आत्माए,इतर योनियाँ,काला जादू,तांत्रिक मुठकरनी, चौकी, लाट, जिन,जिब्राएल,परी दोष,गढ़ंत दोष,पिशाच,ब्रह्मराक्षस,डाकिनी,शाकिनी,ओपरे,नजर आदि हवाएँ इस चक्र से ट कराकर वापस चली जाती है और धारणकर्ता से दूर हो जाती है। जिन साधको को मन्त्र जाप के समय सुरक्षा का भय बना रहता है ,इसको धारण कर सकते है , किन्तु सिद्धि के समय उनको आवाजे सुनाई दे सकती है या कोई दृश्य दिख सकता है किन्तु डरे नही ,वह आपसे दूर होगी । जिन लोगो को शारीरिक बीमारी

शरीर क्रिया मन्त्र पराविज्ञान

शरीर क्रिया मन्त्र पराविज्ञान लाइलाज रोगों से मुक्ति- इस मंत्र विद्या के माध्यम से किसी भी रोग का निदान संभव है। रक्त से सम्बंधित रोग ,माँसपेशियों से जुड़े रोग,अस्थियों से जुड़े रोग,किडनी से जुड़े रोग,ह्रदय से जुड़े रोग,नाड़ियों से जुड़े रोग,लिवर से जुड़े रोग,मस्तिष्क से जुड़े रोग,नसों का ब्लॉकेज खोलना ,पुराने दर्द,किसी भी तरह के ज्वर को ठीक करना अर्थात समस्त साध्य और असाध्य बीमारियों को ठीक किया जाता है। देवी या देवता के वचन के अनुसार साधक किसी भी मनुष्य की बीमारियों को अपने शरीर मे लेता है और रोगी कुछ ही मिनटों में ठीक हो जाता है।साधक की बीमारी को मन्त्र के देव या देवता गृहण कर लेते है हैं।।जिसमे साधक को 7 मिनट का कष्ट होता है जैसे किसी को गले का कैंसर है तो साधक मन्त्र शक्ति से उसके थ्रोट कैंसर को अपने गले मे कल्पना करता है तो देवी या देवता उस बीमारी को साधक के गले मे पहुँचा देते है उस अवस्था मे साधक को 7 मिनट तक गले मे केंसर की पीड़ा होगी और रोगी केंसर मुक्त होगा।।यह शक्ति सभी तरह के कैंसर में कार्य करती है किन्तु जिनका ऑपरेशन हो चुका है उनको देर में आराम होता है। इस विद्या के सिद्ध को न कि