स्तंभन तंत्र प्रयोग:
स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर पर भी पड़ता है। स्तंभन के कुछ अन्य प्रयोग भी होते हैं। जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन और क्रिया स्तंभन आदि। त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे। तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है। शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है। इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिए। अग्नि स्तंभन का मंत्र निम्न है।
।। ॐ नमो अग्निरुपाय मम् शरीरे स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा ।।
इस मंत्र के दस हजार जप करने से सिद्धि होती है तथा एक सौ आठ जप करने से प्रयोग सिद्ध होता है। स्तंभन से संबंधित कुछ प्रयोग निम्नलिखित है:
1. घी व ग्वार के रस में आक के ताजा दूध को मिलाकर, शरीर पर उसका लेप करने से भी अग्नि स्तंभन होता है।
2. केले के रस में घृतकुमारी व ज्वारपाठा के रस को मिलाकर शरीर पर लेप करने से शरीर अग्नि में घिरा होने पर भी नहीं जलता है।
3. पीपल, मिर्च और सौंठ को कई बार चबाकर निगल लें। इसके पश्चात् मुंह में जलता हुआ अंगारा भी रखें, तब भी मुंह नहीं जलेगा।
4. चीनी के साथ गाय के घृत को पीकर अदरक के टुकड़े को मुंह में डालकर चबाएं फिर तपे हुए लोहे के टुकड़े को मुंह में रखे तो वह भी बर्फ की भांति ठंडा प्रतीत होगा।
5. ।। ॐ नमो दिगंबराय अमुकस्य स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा।।
अयुत जपात् मंत्रः सिद्धो भवति। अष्टोत्तर शत जपात् प्रयोगः सिद्धो भवति। उपर्युक्त मंत्र का दस हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है और आवश्यकता होने पर एक सौ आठ बार जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र - ‘अमुकस्य’ के स्थान पर जिसके आसन पर स्तंभन करना हो उसका नाम लेना चाहिए।
अयुत जपात् मंत्रः सिद्धो भवति। अष्टोत्तर शत जपात् प्रयोगः सिद्धो भवति। उपर्युक्त मंत्र का दस हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है और आवश्यकता होने पर एक सौ आठ बार जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र - ‘अमुकस्य’ के स्थान पर जिसके आसन पर स्तंभन करना हो उसका नाम लेना चाहिए।
6. भांगरे के रस में सरसों (सफेद) को पीसकर, मस्तक पर उसका लेप करके जिसके सम्मुख भी जाएंगे उसकी बुद्धि का स्तंभन हो जाएगा।
7. अपामार्ग और सहदेई को लोहे के पात्र में डालकर पींसें और उसका तिलक मस्तक पर लगाएं। अब जो भी देखेगा उसका स्तंभन हो जाएगा।
8. भांगरा, चिरचिटा, सरसों, सहदेई, कंकोल, वचा और श्वेत आक इन सबको समान मात्रा में लेकर कूटें और सत्व निकाल लें। फिर किसी लोहे के पात्र में रखकर तीन दिनों तक घोटें। अब जब भी उसका तिलक कर शत्रु के सम्मुख जाएंगे, तो उसकी बुद्धि कुंठित हो जाएगी।
9. ।। ॐ नमो भगवते महाकाल पराक्रमाय शत्रूणां शस्त्र स्तंभन कुरु-कुरु स्वाहा।
प्रयोग विधि मंत्र: एक लक्ष जपामंत्रः सिद्धो भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशत जपात् प्रयोगः सिद्धयति ध्रुवम्।। उपरोक्त मंत्र का एक लाख जप करने से वह सिद्ध हो जाता है और जब इसका प्रयोग करना हो, एक सौ आठ बार पुनः जप कर प्रयोग करें तो यह प्रयोग सफल होता है।
प्रयोग विधि मंत्र: एक लक्ष जपामंत्रः सिद्धो भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशत जपात् प्रयोगः सिद्धयति ध्रुवम्।। उपरोक्त मंत्र का एक लाख जप करने से वह सिद्ध हो जाता है और जब इसका प्रयोग करना हो, एक सौ आठ बार पुनः जप कर प्रयोग करें तो यह प्रयोग सफल होता है।
10. पुष्य नक्षत्र वाले रविवार के दिन अपराजिता की मूल को उखाड़कर मुंह में रखने अथवा सिर पर धारण करने से शस्त्र स्तंभन हो जाता है।
11. रवि पुष्य के दिन श्वेत गुंजा की मूल को लाकर धारण करें तो युद्ध में शत्रु के शस्त्र का भय नहीं रहता अथवा उसके शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।
12. खजूर की मूल को पैर और हाथ में धारण करने से खंजर-शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।
13. जामुन की मूल को हाथ पर और केबड़े की मूल को मस्तिष्क पर तथा ताड़ की मूल को मुंह में रखने से शस्त्र चाहे जिस प्रकार हो, उसका स्तंभन हो जाता है। इन तीनों जड़ों का चूर्ण बनाकर घृत के साथ सेवन करने से आक्रमणकारी के शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।
14. चमेली की मूल को मुख में रखने से किसी भी शस्त्र का भय नहीं रहता। रविवार को पुष्य नक्षत्र आने पर अपामार्ग की मूल लाकर उसे पीस लें और शरीर पर उसका लेप करें तो सभी प्रकार के शस्त्र से स्तंभन हो जाता है।
15. ।।ॐ नमः काल रात्रि त्रिशूलधारिणी। मम शत्रुसैन्य स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा।।
एक लक्षजपाच्यापं मंत्रः सिद्धः प्रजायते। उपरोक्त शतजपात् प्रयोगे सिद्धिरूतमा।। से भी गर्भ स्तंभन होता है। रविवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र हो, तब काले धतूरे की मूल लाकर गर्भिणी स्त्री की कमर में बांध दें। इससे गर्भ का स्तंभन होता है।
एक लक्षजपाच्यापं मंत्रः सिद्धः प्रजायते। उपरोक्त शतजपात् प्रयोगे सिद्धिरूतमा।। से भी गर्भ स्तंभन होता है। रविवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र हो, तब काले धतूरे की मूल लाकर गर्भिणी स्त्री की कमर में बांध दें। इससे गर्भ का स्तंभन होता है।
16. मिट्टी के एक पात्र में श्मशान की भस्म से शत्रु का नाम लिखें और उसे नीले सूत्र से बांधकर एक गहरे गड्ढे में गाड़ दें। तदनंतर उस पर एक पत्थर रखकर ढांप दें। ऐसा करने से शत्रु की पूरी सेना का ही स्तंभन हो जाता है।
17. ।।ॐ नमो भगवते महारौद्राय गर्भस्तंभनं कुरू कुरू स्वाहा।।
इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए 1 लाख जप करना जरूरी है। अन्यथा प्रयोग सफल नहीं होंगे। जब भी प्रयोग करना हो तो एक सौ आठ बार जप अवश्य करें।
प्रयोग:
इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए 1 लाख जप करना जरूरी है। अन्यथा प्रयोग सफल नहीं होंगे। जब भी प्रयोग करना हो तो एक सौ आठ बार जप अवश्य करें।
प्रयोग:
18. केशर, शक्कर, ज्वारपाठा और कुंदपुष्प को समान मात्रा में शहद में मिलाकर खाने से गर्भपात से रक्षा होती है।
19. ऋतुस्नाता स्त्री यदि रेंडी के बीज को निगल ले तो उसका गर्भ कभी नहीं गिरता। कमर में धतूरे का बीज बांधन घर में हर समय कलह बनी रहेगी।
20. कुम्हार के हाथ से लगी हुई चाक की मिट्टी को शहद में मिलाकर बकरी के दूध के साथ सेवन करने से गर्भ का स्तंभन होता है।
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