सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

डाकिनी तंत्र

डाकिनी तंत्र को अनुसार मूलाधार को चारों रक्तिम दल चार देवियो के प्रतीक है जो मूलाधार की देवियां मानी जाती है । इनमे शौर्य पराक्रम, आक्रामक, प्रवृत्ति, भौतिक शक्ति, शत्रुदमन, क्रियाशीलता, भुभुक्षा, आदि गुण है।
इन दलो पर उन देवियों के बीजमंत्र लिखे हुए है। इस ध्वनि के विशेष सस्वर पाठ से या मानसिक पाठ से इन्हें ध्यान लगाकर उद्वेलित किया जा सकता है, इससे ये देवियाँ जाग्रत हो जाती है
इससे साधक मे इन गुणों की तीव्रता उत्पन्न हो जाती है पीले रंग का धरातल भोग का भौतिकवाद है । यह लक्ष्मी का प्रतीक है । धन, ऐश्वर्य, भोग, भूमि, अधिकार आदि इनकी प्रवृत्तियां है। यहां से वह शक्ति उद् भव होती है, जो भोग को भौतिक रूप की प्राप्ति से लिए क्रियाशील होती है ।
त्रिभुज की तीनों भुजाएँ त्रिपुर भैरवी या त्रिपुरसुन्दरी है, अर्थात कामनां, तृष्णा और भोगेेच्छा! ये हमेशा जवान रहती है इसलिए इन्हें त्रिपुरसुन्दरी कहा जाताहै ।
त्रिकोण के मध्य मे डाकिनी का निवास होता है । जिसे रक्तवर्ण नेत्रों वाली यानि तामसी पशुजनों, के मन मे भय उत्पन्न करने वाली (अर्थात पशु भाव वालो के मन मे) दाहिने हाथ मे शुल्क और खडग तथा बायें हाथ मे तलवार एवं मदिरा कि प्याला है इसे क्षीर (वीर्य) पसन्द है।
इसी कारण जो स्त्री पुरुष नदी किनारे जगलं खाली पडे मकान पीपल बरगद कीकर बबुल श्मशान और बहते जल मे अप्राकृतिक तरीके से ढंग से वीर्य पात व रज का पात यानि हस्तमिथुन करते है वे महा घोर व्याधियों मे पड जाते है प्राकृतिक डाकिनी उन्हें जकड लेती है जो मनुष्य बिना गुरू के किताबे पढकर काली, योगिनी, भैरवी, की साधना करते है।
उन्हें अक्सर काली मोटी स्त्री स्वप्न मे सहवास करते दिखती है वीर्यपात होने पर भी वह कपडे पर नही दिखाई देता है तथा कोई स्त्री उनमे आकृषण नही देखती उनका जीवन नरक बन जाता है डाकिनी का उपचार सरल नही होता है ।
इस डाकिनी काअर्थ उस शक्ति से है जो काम भाव, उग्रता, तीक्ष्णता, मादकता, आदि का बीजरूप है यह जब तक शान्त नही होती, जब तक क्षीर (वीर्य या रज) का भक्षण नही कर लेती ,अर्थात जब भी यह डाकिनी जाग्रत होती है, वीर्य या रज का भक्षण करना चाहती है।
तो कुछ लोग इसे योनि का प्रतीक बताते है पर यह योनि का प्रतीक नही है यह त्रिकोण सुषुम्ना के सिरे पर स्थित है शरीर मे स्थूल रूप मे भीे रीढ की हड्डी की रचना यहाँ त्रिकोणात्मक होती है ।
इस त्रिकोण को मध्य तक सुषम्ना नाडी आती है मुख पर यह त्रिकोण है ,इसकी संरचना ही इस प्रकार है हड्डी का कवर तो नीचे तक है यह ऊर्जा त्रिकोण त्रिकास्ति जोड पर स्थित ऊर्जा कमल चक्र के मध्य मे है इसमे उपर्युक्त प्रवृत्तियां है

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

देवी महाकली के खतरनाक मौत के मंत्र - काली का खारनाकक मारन प्रार्थना

देवी महाकली के खतरनाक मौत के मंत्र    - काली का खारनाकक मारन प्रार्थना यह देवी महाकाली से संबंधित मौत मंत्र का खतरनाक रूप है  देवी महाकली इस चरण में वांछित काम करते हैं।  इस मंत्र के परिणामस्वरूप देवी इस मारन प्रार्थना को पूरा करेंगे। देवी महाकाली के खतरनाक मौत के मंत्र - ओम चाँदलीनी कामखन वासनी वैन डरगे क्लिन क्लिन था: गु: स्वाहा: खतरनाक मृत्यु मंत्र देवी महाकाली के अनुष्ठान - सबसे पहले हमें 11000 बार मंत्र जप से मंत्र की इस शक्ति को सक्रिय करने की आवश्यकता है  फिर जब गोवर्चन और कुम कुम के साथ भोजपतराह पर नीचे बखूबी रेखा लिखने का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।  रेखा है - 'स्वाहा मेर्य्य हुन अमुक्कन (शत्रु का नाम यहाँ) ह्रीम फाट स्वाहा |  अब इसके बाद के मंत्र के साथ बाहर निकलते हैं और गर्दन में पहनते हैं, कुछ दिनों में दुश्मन की समय सीमा समाप्त हो जाएगी और देर हो जाएगी देवी महाकाली के खतरनाक मौत की घंटी हिन्दि संस्करण में - काली का  खारनाकक  मारन  प्रैयोग  -  खतरनाक  मारन  प्रयोग   ।  मंत्र  ।   चाण्डालिनी   कामाख्या  वासिनी  वन  दुर्गे  क्

स्तंभन तंत्र प्रयोग:

स्तंभन तंत्र प्रयोग: स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर पर भी पड़ता है। स्तंभन के कुछ अन्य प्रयोग भी होते हैं। जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन और क्रिया स्तंभन आदि। त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे। तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है। शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है। इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिए। अग्नि स्तंभन का मंत्र निम्न है। ।। ॐ नमो अग्निरुपाय मम् शरीरे स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा ।। इस मंत्र के दस हजार जप करने से सिद्धि होती है तथा एक सौ आठ जप करने से प्रयोग सिद्ध होता है। स्तंभन से संबंधित कुछ प्रयोग निम्नलिखित है: 1.

बगलामुखी शत्रु विनाशक मारण मंत्र

शत्रु विनाशक बगलामुखी मारण मंत्र मनुष्य का जिंदगी में कभी ना कभी, किसी न किसी रूप में शत्रु से पाला पड़ ही जाता है। यह शत्रु प्रत्यक्ष भी हो सकता है और परोक्ष भी। ऐसे शत्रुओं से बचने के लिए विभिन्न साधनों में एक अति महत्वपूर्ण साधना है मां बगलामुखी की साधना। देवी मां के विभिन्न शक्ति रूपों में से मां बगलामुखी आठवीं शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है, जिसकी कृपा से विभिन्न कठिनाइयों और शत्रु से निजात पाया जा सकता है। कोई भी शत्रु चाहे वह जितना ही बलवान और ताकतवर हो अथवा छुपा हुआ हो, मां बगलामुखी के सामने उसकी ताकत की एक भी नहीं चल सकती। बगलामुखी शत्रु नाशक मंत्र की सहायता से शत्रु को पल भर में धराशाई किया जा सकता है, यह मंत्र है- ( १)  “ओम् हलीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिह्वां कीलय बुद्धिम विनाशाय हलीं ओम् स्वाहा।” इस मंत्र साधना के पहले मां बगलामुखी को लकड़ी की एक चौकी पर अपने सामने स्थापित कर धूप दीप से उनकी पूजा-अर्चना करें। तत्पश्चात दिए गए मंत्र का प्रतिदिन एक हजार बार जाप करते हुए दस दिनों तक दस हजार जाप करें। नवरात्रा के दिनों में मंत्र जाप प्रारंभ करें और जाप