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शत्रु उच्चाटन मंत्र टोटके

षटकर्म प्रयोग
यह तांत्रिक षट्कर्म प्रयोग से संभव हो पाता है। इसके द्वारा किसी भी व्यक्ति के मन में कार्य के प्रति विरोधी भावना रखने वाले के गुण, स्थान आदि के प्रति अरुचि पैदा कर दी जाती है, जिससे शत्रु से विकर्षण और कार्य के प्रति आकर्षण बन जाता है। उच्चाटन का यह प्रयोग उनके लिए बहुत ही उपयोगी साबित होता है, जो किसी के वशीभूत हो चुके होते हैं, अपने कार्मपथ से भटक जाते हैं, गलत संगत में पड़ जाते हैं, बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं या फिर किसी के बहकावे में आकर संस्कार व सम्मान भूल जाते हैं। साथ ही पति-पत्नी के बीच किसी तीसरे के आ जाने से आपसी संबंध बिगड़ने, पारिवारिक मान-मर्यादा कलंकित होने, प्रतिष्ठा पर आंच आने, रुपया-पैसा या धन-संपत्ति के अपव्यय या अनावश्यक खर्च होने जैसी समस्याओं को भी इससे दूर किया जा सकता है।
उच्चाटन के फायदे
जन्म कुंडली के अनुसार ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव से घरेलू, पारिवारिक, कामकाजी, आर्थिक मामलों को लेकर चली आ रही मानसिक अशांति को उच्चाटन प्रयोग से खत्म किया जाता है। परस्त्री या परपुरुष गमन में लिप्त व्यक्ति को सही रास्ते पर लाने का यह प्रयोग अद्भुत और अचूक असर देता है। इसके द्वारा दरिद्रता दूर करने के साथ-साथ किसी द्वारा धन-संपदा पर कब्जा करने वालों से छुटकारा दिलवाया जा सकता है, तो दरिद्रता और अशांति को भी दूर किया जा सकता है। इसी तरह परिवार व समाज के रीति-रिवाजों के विरूद्ध जाकर बेमेल, अनैतिक या अनुचित प्रेमपाश में फंसी किसी विवाहिता या कुंवारी स्त्री को उच्चाटन प्रयोग से ही सही मार्ग पर लाया या उसे बचाया जा सकता है। इस प्रयोग के बाद उस स्त्री के मन में वैसे प्रेम से हमेशा के लिए विरक्ति हो जाएगी।
वशीकरण से भिन्न
उच्चाटन प्रयोग वशीकरण के प्रयोग से भिन्न है, क्योंकि उसमें उग्र शक्तियों वाले देवी-देवताओं का सहयोग लिया जाता है, जबकि वशीकरण में सौम्य शक्तियों का साथ मिलता है। यही कारण है कि उच्चाटन की तांत्रिक क्रिया जानकार तांत्रिक के मार्गदर्शन में ही किया जाता है, जो कि विकर्षण के सिद्धांत पर आधारित है। देवी-दवताओं की आराधना और तंत्र-मंत्र के साथ विधि-विधान पूर्वक साधना व सिद्धि से मन में अरुची और वितृष्णा के भाव भरे जाते हैं, जिससे दूरी या अनचाहेपन यानि नकारात्मक भाव स्वतः उत्पन्न हो जाते हैं और वह सही-गलत में फर्क समझकर सकारत्मक दिशा की ओर रूख कर लेता है।
कालरात्रि साधना 
शत्रु से छुटकारा दिलाने के लिए काल रात्रि साधना एक बहुत ही उपयोगी और शीघ्र फल देने वाला उपाय है। इसे तांत्रिक के सहयोग से काफी सतर्कता के साथ करने की सलाह दी गई है, अन्यथा इसके प्रतिकूल प्रभाव मिल सकते हैं। उच्चाटन कार्य, व्यक्ति का नाम संबंधी संकल्प लेकर साधना का आरंभ कृष्णपक्ष चतुर्दशी की रात्रि में किया जाना चाहिए। काले आसन पर दक्षिण दिशा की ओर बैठकर दिए गए मंत्र का 11 दिनों तक प्रतिदिन 11 माला का जाप किया जाता है। तीव्रता से उच्चाटन का लाभ लेने के लिए 21 माला का जाप करना होता है। बारहवें दिन कार्य सिद्धि की पूर्णाहुति काले तिल, लौंग, काली मिर्च और चंदन आदि के पावडर से कम से कम 108 बार मंत्र का जाप करते हुए हवन करना आवश्यक है। उसके बाद चोटी के कुछ बाल उखाड़कर जमीन में दबा दें और हवन की राख को जल नदी के बहते जल में प्रवाहित कर दें। जाप किया जाने वाला मंत्र इस प्रकार हैः-
ऊँ ब्लूं स्लूं म्लूं क्ष्लूं कालरात्रि महाध्वांक्षी अमुक माश्ूच्चाटय आशूच्चटाय छिन्धी भिन्धी स्वाहा! कामाक्षी क्रों!!
इसमें अमुक के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना चाहिए जिसके लिए उच्चाटन का प्रयोग किया जाना है। सिद्धि की पूर्णाहुति के बाद तीन दिनों तक भगवान शिव का नियमित जलाभिषेक करना जरूरी है।
शत्रु से छुटकारा
बार-बार परेशान करने वाले शत्रु से छुटकारा एक सामान्य प्रयोग के जरिए भी संभव है। खासकर सहकर्मियों या सहयोगियों के कारण आने वाली परेशानी से राहत मिल सकती है, तो इसके द्वारा खुद की गई भूलों को भी सुधारा जा सकता है। यह उपाय मंगलवार या शनिवार को भौरव जी के मंदिर में उनके सामने किया जाता है। भैरव जी के सामने चैमुखा दीपक जलाएं। इससे पहले उसकी चारों बत्तियों को रोली से रंग लें। उसके बाद शत्रु का नाम लेकर दीपक के तेल में एक चुटकी पीली सरसों कुछ दाने डालकर नीचे दिए गए ध्यान के श्लोक का 21 बार पाठ करें। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने पर दीपक के तेल में एक चुटकी लाल सिंदूर डालें। मुंह में एक लौंग रखें और एक लौंग हाथ में लेकर शत्रु का स्मरण करते हुए निम्नलिखित मंत्र का 21 बार जाप करें। इस तरह से पांच लौंग के साथ जाप करें। लौंग का ऊपरी हिस्सा तेल में डाल दें और बाकी का भाग जमीन में दबा देें।
ध्यान करने के श्लोकः
ध्यायेन्नीलाद्रिकांतम शशिश्कलधरम्मुण्डमालं महेशम्।
दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ सृणिंखडगपाशाभयानि।
नागं घण्टाकपालं करसरसिरु हैर्बिभ्रतं भीमद्रष्टम्।
दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयमिलसदकिंकिणी नुपुराढ्यम्।
जाप का मंत्रः ऊँ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः!
इस साधना को दक्षिण दिशा की ओर मुखकर करना चाहिए तथा इसे शनि मंदिर में भी किया जा सकता है। पूरा अनुष्ठान खत्म होने के बाद दीपक को आधी रात को किसी चैराहे पर रख दें। इस दौरान किसी की नजर नहीं पड़नी चाहिए। यदि इस प्रयोग से एकबार में शत्रु शांत नहीं हो पाता है तो इसे पांच बार करने से लाभ मिलता है।
शत्रु उच्चाटन के दुर्गा प्रयोग
देवी दुर्गा की आराधना कर भी शत्रु उच्चाटन साधना कर संघर्ष को खत्म किया जा सकता है। यह प्रयोग किसी भी माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शुरू किया जाता है। वैसे इसे किसी भी शनिवार को किया जा सकता है। इसका समय रात्रि के 11 बजे के बाद है। साधना की शुरूआत से पहले लाल वस्त्र में लाल आसन पर दक्षिण की ओर मुंह कर बैठें। अपने सामने देवी दुर्गा की तस्वीर रखें और शत्रु का नाम लेकर उससे बचाव की मन्नत मांगते हुए उच्चाटन मंत्र का 51 माला जाप करें। मंत्र मंे दिए गए अमुक के स्थान पर शत्रु का नाम लें। इसका मंत्र हैः-
ऊँ दुँ दुर्गायै अमुकं उच्चाटय उच्चाटय शीघ्रं सर्व शत्रु बाधा नाशय नाशय फट!
इस साधना के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान तीन दिनों का होता है। उसके बाद यंत्र, माला और दूसरी पूजन सामग्रियों को जमीन में दबा दिया जाता है।

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