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कर्ण पिशाचिनी प्रयोग

कर्ण पिशाचिनी प्रयोग   कर्ण पिशाचिनी प्रयोग- व्यक्तिगत, पारिवारिक या सामाजिक समस्याओं से मुक्ति के लिए वशीकरण या सम्मोहन से संबंधित वैदिक, तांत्रिक और यांत्रिक साधनाओं के प्रयोगों की तुलना में कर्ण पिशाचिनी प्रयोग बहुत ही अलग और खास असर देने वाला होता है। तांत्रिक विद्वान के सानिध्य में घोर साधना और मंत्रजाप के जरिए इस अदृश्य शक्ति का ही वशीकरण कर लिया जाता है, जो स्त्री रूप में एक यक्षिनी होती है। उसे ही ‘कर्ण पिशाचिनी’ कहा गया है। कौन है कर्ण पिशाचिनी़?

तंत्र और मंत्र शास्त्र की मान्यताओं के अनुसार कर्ण पिशाचिनी अपार शक्तियों से भरी एक अद्भुत स्त्री रूप होती है। उसके वशीभूत होते ही वह न केवल बीते काल की घटित घटनाओं के बारे में बताती है, बल्कि मौजूदा समय में चल रही परिस्थितियों से भी अगाह करवाते हुए मार्ग-दर्शन कर भविष्यवाणी भी करती है। इस दौरान व्यक्ति खुद को आत्मविश्वास से भरा हुआ और अद्भुत शक्ति-संपन्न बन जाता है। यह कहें उसमें दैवीय शक्ति आ जाती है और इच्छापूर्ति संभव हो पाती है। इसकी साधना अगर श्मशान में अधोरी के द्वारा या उसकी मदद से की जा सकती है तथा इसके मंत्र को त्रिकालदर्शी मंत्र कहा गया है। कहते हैं इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन हर सू़क्ष्म से सू़़क्ष्म और छिपी हुई घटनाओं का पता चल जाता है। उन घटनाओं के आधार पर जीवन के बारे मंे सकारात्मक विचारों का विश्लेषण कर समास्याओं का समाधान निकाला जाता है।
कर्ण पिशाचिनी साधना और मंत्र
कर्ण पिशाचिनी की साधना का अनुष्ठान वैदिक और तांत्रिक दोनों ही विधियों से किया जा सकता है। इसे एक गुप्त त्रिकालदर्शी साधना माना गया है, जो 11 या 21 दिनों में पूर्ण होती है। इसकी सधना करने वाला व्यक्ति थोड़े समय के लिए त्रिकालदर्शी बन जाता है। इसे सामान्य विधि-विधान से संपन्न नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसकी साधना करने वाले में इसके प्रति घोर आस्था, आत्मविश्वास और असहजता को झेलने की अटूट व अटल क्षमता होनी चाहिए। यही कारण है कि इसे समान्य व्यक्ति को करने से सख्त मना किया जाता है। साधना करने का का मुख्य मंत्र इस प्रकार हैः-
ऊँ लिंग सर्वनाम शक्ति भगवती कर्ण-पिशाचिनी चंड रुपी सच स चमम वचन दे स्वाहा!!
कर्ण पिशाचिनी साधना विधिः इसकी साधना भले ही अत्यधिक विकट हो, लेकिन दुःसाध्य नहीं है और सिद्धि का लाभ तुरंत मिलता है। साधना-सिद्धि के समय काले वस्त्र धारण करने, साधना काल में अनुचित बार्तालाप नहीं करने, निराहार रहने और विशेषकर स्त्री-गमन से हर स्तर पर दूर रहने की सलाह दी गई है। इसके विशेषज्ञ तांत्रिकों के अनुसार कड़े नियमों के पालन में रत्ती भर की कमी या त्रुटी नहीं होनी चाहिए। ऐसा होने पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है और लाभ के वजाय भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। मूल रूप से यह कहा जा सकता है कि इस साधना को कोई भी व्यक्ति अकेल संपन्न नहीं कर सकता है। इसके लिए किए जाने वाले कुछ प्रयोग इस प्रकार होते हैंः-
पहला प्रयोगः ग्यारह दिनों तक चलने वाले कर्ण पिशाचिनी की साधना के लिए रात या दिन को चैघड़िया मुहूर्त के दौरान पीतल या कांसे की थाली में उंगली के द्वारा सिंदूर से त्रिशूल बनाएं। और फिर शुद्ध गाय का घी और तेल के दो दीपक जलाएं और उसका सामान्य पूजन करें। उसके बाद 1100 बार बताए गए मंत्र का जाप करें। इस प्रयोग को कुल 11 दिनों तक दुहराने से कर्ण पिशाचिनी सिद्ध हो जाती है। जाप का मंत्र हैः-
ऊँ नमः कर्ण पिशाचिनी अमाघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर
अतीतनागतवर्तमानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय ह्रीं कर्णपिशाचिनी स्वाहा!!
दूसरा प्रयोगः इस प्रयोग को अक्सर होली या दीपावली, या फिर ग्रहण के दिन से शुरू किया जाता है और इसकी पूर्णाहूति 21वें दिन होती है। प्रयोग के लिए आम की लकड़ी के बने तख्त पर अनार की कलम से दिए गए मंत्र को 108 बार लिखते हुए उच्चारण किया जाता है। एक बार लिखने के बाद उसे मिटाकर दूसरा लिखा जाता है। अंतिम बार इसकी पंचोपचार विधि से पूजा की जाती है और फिर 1100 बार मंत्र का स्पष्ट उच्चारण के साथ जाप किया जाता है। इसका मंत्र इस प्रकार हैः-
ऊँ नमः कर्ण पिशाचिनी मत्तकारिणी प्रवेशे
अतीतनागतवर्तमानानि सत्यं कथय में स्वाहा!!
तीसरा प्रयोगः इस प्रयोग के लिए ग्वारपाठे को अभिमंत्रित कर उसके गूदे को हाथ और पैरों पर लेप लगाया जाता है। यह प्रयोग भी 21 दिनों का है तथा प्रतिदिन पांच हजार जाप किया जाता है। इसकी 21 दिनों में सिद्धि के बाद कान में पिशाचिनी की आवाज स्पष्ट सुनी जा सकती है। इसका मंत्र हैः-
ऊँ ह्रीं नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा!!
चतुर्थ प्रयोगः यह प्रयोग भी तीसरे जैसा ही किया जाता है। फर्क केवल मंत्र का है। इसमें दिए गए मंत्र का प्रतिदिन पांच हजार जाप काले ग्वारपाठे को सामने रखकर करते हुए 21 दिनों तक सिद्धि की साधना पूर्ण की जाती है। मंत्र हैः-
ऊँ ह्रीं सनामशक्ति भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडरूपिणि वद वद स्वाहा!!
पांचवां प्रयोगः गाय के गोबर के साथ पीली मिट्टी मिलाकर प्रतिदिन पूरे कमरे की लिपाई की जाती है। या फिर तुलसी के चारो ओर के कुछ स्थान को लेपना चाहिए। उस स्थान पर हल्दी, कुमकुम व अक्षत डालकर आसन बिछाएं और नीचे दिए गए मंत्र का प्रतिदिन 10,000 बार जाप करें। इससे कर्ण पिशाचिनी को सिद्ध किया जाता है। यह प्रयोग कुल 11 दिनों में संपन्न हाता है।
मंत्रः ऊँ हंसो हंसः नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी स्वाहा!!
छठा प्रयोगः इस प्रयोग में विशेष बात यह है कि इसे रात को लाल परिधान में किया जाता है। इसका शुभारंभ घी का दीपक जलाने के बाद 10,000 मंत्र-जाप से किया जाता है। प्रतिदिन जाप करते हुए इसे 21 दिनों तक करने के बाद कर्ण पिशाचिनी की साधना पूर्ण होती है। इसका एक काफी छोटा मंत्र हैः-
ऊँ भगवति चंडकर्णे पिशाचिनी स्वाहा!!
सातवां प्रयोगः यह प्रयोग आधी रात को कर्ण पिशचिनी को एक देवी के रूप में स्मरण कर किया जाता है। इसे सबसे अधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि वेद व्यास ने इस मंत्र को सिद्ध किया था। सबसे पहले मंत्र की पूजा ऊँ अमृत कुरु कुरु स्वाहा! लिखकर करनी चाहिए। उसके बाद मछली की बली देने का विधान है। जो निम्न मंत्र के साथ किया जाता है।
ऊँ कर्ण पिशाचिनी दग्धमीन बलि,
गृहण गृहण मम सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा!
इस विधान के पूर्ण होने के बाद दिए गए मंत्र का जाप पांच हजार बार करना चाहिए। ध्यान रहे पूरी प्रक्रिया प्रातः सूर्योदय से पहले पूर्ण हो जाए।
मंत्रः ऊँ ह्रीं नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा!!

इसकी पूर्णाहुति तर्पण के मंत्र ऊँ कर्ण पिशाचिनी तर्पयामि स्वाह! से की जाती है। यह प्रयोग कुल 21 दिनों में संपन्न होता है।  कुल मिलाकर कर्ण पिशाचिनी के अनोखे प्रयोग से जीवन में मनोवांछित बदलाव लाया जा सकता है।उसके वशीभूत होते ही वह सीधे कान में आकर घटनाओं और समस्याओं का समाधान बताती है और मुश्किलों से छुटकारा मिलाता है। यही नहीं पिशाचिनी की कृपा से उस दौरान मुहंमांगे वरदान की पूर्ति भी हो जाती है। पूछे गए किसी भी प्रश्न का जवाब कान में बताती है                 


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