तंत्रशास्त्र, यंत्र-मन्त्र-तंत्र की साधनाओं एवं तांत्रिकों के विषय में जन सामान्य बड़ी-बड़ी भ्रांतियों के शिकार है | अधिकांश व्यक्ति तो तंत्र-साधना ,तंत्र शास्त्र और तांत्रिकों के बारे में बातें करना तो दूर, इनका नाम सुनते ही भड़क उठते है | क्योंकि वे समझते है कि दूसरों को हानि पहुँचाने की द्रष्टि से की गयी साधना, यंत्र सम्मुख रखकर मन्त्रों की सिद्धि करना और फिर उस शक्ति के बल पर दूसरों का अहित करना जैसी क्रियाएं ही तंत्र के अंतर्गत आती है | यदि आप भी इस मिथ्या धारण के शिकार है तो यही कहना उचित होगा कि आप पूर्णतया भ्रम में है |वास्तव में तंत्र साधना अर्थात यन्त्र सम्मुख रखकर मंत्रो के जप और हवन आदि – आत्म कल्याण , आत्म बल की प्राप्ति और अपने आराध्य देव की विशेष कृपाओं की प्राप्ति का सबसे सुगम मार्ग है | तन्त्र साधक को वे दैवीय शाक्तियाँ सजह जी मिल जाती है जिनका सफल सम्पादन करने के बाद व्यक्ति देव पुरुष बन सकता है | परन्तु दुर्भाग्य का विषय है कि अनेक तंत्र साधक इन शक्तियों का दुरूपयोग भी करते है और इसी कारण आम व्यक्ति तांत्रिकों और तन्त्र साधना से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझता है |
मंत्र, यन्त्र और तंत्र :
यन्त्र, मंत्र और तंत्र तीन पूर्णतः पृथक-पृथक वस्तुएं है और इनकी साधनाओं में भी पर्याप्त अंतर है | हम उपासना करते समय भी आराध्य देव को विविध वस्तुएं और सेवाएं मंत्रो के माध्यम से समर्पित करते है | परन्तु मंत्र का यह स्तवन और उपासना के अंतिम चरण में अपने आराध्य देव की किसी मन्त्र की एक या दो माला का जप मंत्र साधना के अंतर्गत नहीं आते | मंत्र साधना : जब विधि-विधान के अनुसार किसी विशिष्ट प्रयोजन हेतु आराध्य देव के बड़ी संख्या में मंत्र जप नियमित रूप से संकल्प लेकर किये जाये तो यह मंत्र साधना कहलाते है | मन्त्रों का विधिविधान पूर्वक जप करते समय जपे जाने वाले मंत्र की शक्ति को और भी अधिक बढ़ाने, मंत्र जप के प्रभाव को शीघ्र एवं अधिक सशक्त रूप में प्राप्त करने के लिए मन्त्र जपते समय उस देवता के किसी यन्त्र को सम्मुख रखने की सलाह हमारे शास्त्र देते है | जब आराध्य देव का यन्त्र सम्मुख रखकर निश्चित संख्या में नियमित रूप से जप किया जाता है तब मन्त्रों का यह जप ही मंत्र सिद्धि अथवा मंत्र साधना कहलाता है |
यंत्र साधना : जब शास्त्रों में वर्णित विधि अनुसार किसी यंत्र को सम्मुख रखकर मन्त्रों का जप करते समय हमारा मुख्य जोर यन्त्र के पूजन और उसकी प्राण प्रतिष्ठा पर होता है तो यह क्रिया यन्त्र साधना कहलाती है | यन्त्र साधना करते समय हम मंत्र का बड़ी संख्या में जप तो करते है परन्तु हमारा मुख्य जोर यन्त्र के पूजन पर होता है |
तंत्र साधना : जब यंत्र के साथ-साथ यंत्र पूजन में काम आने वाली वस्तुओं का प्रयोग करते हुए किसी विशेष प्रयोजन की आपूर्ति हेतु विशेष विधि-विधान-पूर्वक मन्त्रो का जप किया जाता है | तब यह क्रिया तंत्र साधना कहलाती है
इस प्रकार ये तीनों साधनाएँ परस्पर एक दुसरे से जुडी हुई है | परन्तु तीनों के ध्येय और कार्यविधि में पर्याप्त अंतर है |
यंत्रों की शक्ति का रहश्य :- उपासना करते समय आराध्य देव के किसी यन्त्र अथवा मूर्ति के प्रयोग की अनिवार्य आवश्यकता नहीं, परन्तु मंत्र-यन्त्र सिद्धि अथवा तांत्रिक सिद्धि में यन्त्र का प्रयोग उसी प्रकार अनिवार्य है जिस प्रकार मूर्ति पूजा में प्रतिमा का उपयोग | हमारे धर्म में मूर्तियों, यंत्रों और मन्त्रों तीनों को ही देवताओं का स्वरूप माना गया है | मूर्तियाँ, प्रतिमाएं और चित्र स्थूल रूप में उनके प्रतीक है, तो मंत्र देवताओं के अगोचर-अक्षर रूप | परन्तु जहाँ तक यंत्रों का प्रश्न है ये देवताओं की शक्तियों के प्रतीक ही नहीं बल्कि देवताओं के साक्षात् रूप ही होते है और वह भी अत्यंत शक्तिशाली रूप में | प्रत्येक देवी-देवता के अलग-अलग यन्त्र होते है और जिस देवता के मंत्र का हम जप करते है उसी देवता के यन्त्र का प्रयोग करते है यन्त्र-मंत्र-तंत्र साधनाएं करते समय | यद्यपि सभी देवताओं के पृथक-पृथक यंत्र होते है परन्तु किसी भी यंत्र में देवता का चित्र अथवा आकृति का अंकन नहीं होता | प्रत्येक यन्त्र में कुछ रेखाएँ, कुछ अंक और कुछ अक्षर अथवा शब्द एक निश्चित क्रम में अंकित होते है |
प्रत्येक यन्त्र में कुछ रेखाएँ होती है परन्तु महत्व इन रेखाओं की संख्या अथवा माप का नहीं, बल्कि इनकी आकृति का है | इन रेखाओं की आकृति और उनका क्रम किसी भी यन्त्र को उसका स्वरुप प्रदान करते है, तो उनके मध्य अंकित अक्षर और अंक प्रदान करते है यन्त्र को विशिष्ट शक्ति | यन्त्र में अंकित इन अक्षरों और अंकों को बीज कहा जाता है | तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में कहा गया है कि विभिन्न प्रकार के यंत्रों की रेखाएँ, बीजाक्षर और बीजांक दिव्य शक्तियों से प्रभावित होते है | यही कारण है कि साधक जब किसी यंत्र पर द्रष्टि जमाकर किसी विशिष्ट मंत्र का जप करता है, तब न केवल उसके मन और शरीर पर ही बल्कि आस-पास के वातावरण पर भी मन्त्रों और उस यन्त्र की शक्ति का सम्मलित प्रभाव पड़ता है | यही कारण है कि यंत्र सम्मुख रखकर मन्त्रों का जप करने पर बहुत ही शीघ्र सफलता प्राप्त होती है, परन्तु इसके लिए आवश्यक है विधि-विधान की पूर्ण जानकारी, पर्याप्त अनुभव, द्रढ़ इच्छाशक्ति और पवित्र मन के साथ-साथ कुशल गुरु का मार्ग दर्शन |इस प्रकार यंत्रों में निहित शक्तियों के कारण ही तांत्रिक साधना में यंत्रों और मन्त्रों का सयुंक्त प्रयोग किया जाता है | अब यह बात दूसरी है कि कोई इनका प्रयोग अपनी भलाई के लिए करता है, तो कोई दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए | रावण और मेघनाद भी तन्त्र शास्त्र के प्रकांड विद्वान् और पहुँचे हुए तांत्रिक थे, तो गुरु गोरखनाथ और उनके अधिकांश शिष्य भी मूल रूप से तंत्र साधक ही थे | रावन इस शक्ति के बल पर राक्षस बन गया था तो गोरखनाथ पहुँचे हुए संत | आराधना-उपासना के विपरीत तंत्रशास्त्र के ज्ञान का प्रयोग दूसरों को हानि पहुँचाने के लिए भी किया जा सकता है और मात्र इसी कारण से जनसामान्य तंत्र साधना और तांत्रिकों से दूर रहना पसंद करता है
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