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मंत्र साधना के आवश्यक नियम

शास्त्रों में मंत्र साधना द्वारा द्वारा ईष्ट देव से सिद्धि प्राप्त करने का वर्णन मिलता है | अनादि काल से हमारे ऋषि-मुनियों ने विभिन्न साधनाओं में सफलता प्राप्त कर मानव कल्याण किया है | शास्त्रों में वर्णित सभी मंत्र अपने अन्दर असीमित शक्तियों को समाये हुए है | इन शक्तियों का अहसास केवल वे जातक कर पाते है जो विधिवत साधना द्वारा इनमें सिद्धि अर्जित करते है | साधना के समय शास्त्रों में वर्णित नियमों का पालन करना अति अनिवार्य है अन्यथा कभी-कभी साधना से फल की प्राप्ति होना तो दूर, विपरीत परिणाम भी सामने आने लगते है | आइये जानते है साधनाके समय किन-किन नियमों का पालन करना जरुरी है

साधना के लिए स्थान का चुनाव : –

साधना के लिए एकांत स्थान का चुनाव करना चाहिए जिससे कि आपकी पूजा अथवा साधना में किसी प्रकार का व्यवधान न उपस्थित हो | केवल मंत्र जप संख्या पूर्ण करना ही आवश्यक नहीं बल्कि एकाग्र होकर पूजन संपन्न हो , यह आवश्यक है | जप का स्थान शुद्ध हो, शांतिमय हो | शास्त्रों में पवित्र नदियों के तट, पर्वत , जंगल , तीर्थ स्थल , गुफाओं आदि की प्राथमिकता दी है | क्योंकि ऐसे स्थाओं पर मन स्वतः ही एकाग्र होने लगता है | घर के एकांत कमरे को शुद्ध-स्वच्छ बनाकर पूजा-साधना -अनुष्ठान किया जा सकता है |
मंत्र साधना के आवश्यक नियम :-
  • तन की शुद्धि के लिए स्नान आवश्यक है | स्नान से शरीर को शीतलता प्राप्त होती | जिसका मन पर भी प्रभाव पड़ता है | पूजा-आराधना,साधना आदि पुण्य कार्य आरम्भ करने से पूर्व स्नान अवश्य करें | यदि शरीर में किसी प्रकार की विवशता हो तो हाथ मुंह धोकर या गीले कपड़े से पूरे शरीर को पौंछ्कर भी साधना आरंभ की जा सकती है | शरीर पर एक अधोवस्त्र तथा दूसरा उपवस्त्र धारण करें | शरद ऋतू में गरम वस्त्र का उपयोग किया जा सकता है |
  • साधना के लिए एकांत स्थान का चयन करना चाहिए
  • बैठने के लिए आसन का विशेष ध्यान रखना चाहिए | साधना में पालथी मारकर बैठे और मेरुदंड को सीधा रखे |
  • कुशासन, रेशमी आसन, ऊनी , म्रगचर्म अथवा व्याघ्र चर्म आदि में से साधना के अनुकूल आसन का प्रयोग करें |
  • शिव-उपासना में रुद्राक्ष की माला , लक्ष्मी उपासना में कमल गट्टे की माला, तांत्रिक प्रयोग में सर्प की हड्डी की माला, बगलामुखी उपासना में हल्दी की माला का उपयोग करना चाहिए | जप कार्य माला से किया जाना चाहिए | प्रातः काल पूर्व की ओर तथा सांयकाल पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करना चाहिए | कुछ विशिष्ट साधनाओं में साधनानुसार दिशा का विचार किया जाना चाहिए | ब्रह्म मुहूर्त में साधना उत्तम मानी गयी है |
  • साधना सदैव एक निश्चित स्थान पर करनी चाहिए | स्थान शुद्ध एवं स्वच्छ हो | स्थान में बदलाव न करें |
  • माला जप करते समय सुमेरु का उलंघन नहीं करना चाहिए अर्थात जप करते समय सुमेरु तक पहुंचे फिर वहाँ से माला को उल्टा कर देना चाहिए |
  • 108 मानकों वाली जप माला का उपयोग करना उत्तम होता है |
  • मंत्र जप के समय माला को गोमुखी में रखना चाहिए |
  • जप करते समय झूमना, पैर हिलाना आदि वर्जित माना जाता है |
  • जप के समय लौंग , इलायची, पान या अन्य किसी प्रकार के खाद्य पदार्थ का सेवन न करें इससे एकाग्रता भंग होती है तथा ये निषिद्ध और दोषपूर्ण माने गये है |
  • जप करते समय मन को निर्मल एवं निष्कपट रखें |
  • पूजा आराधना करते समय पुष्पों का आभाव हो तो मानसिक पुष्प अपने ईष्ट(जिस देव की आप साधना कर रहे है ) को अर्पित करें |
  • जप के समय कंठ से ध्वनि होनी चाहिए , होंठ भी हिलने चाहिए किन्तु कंठ ध्वनि ऐसी हो की निकट बैठे व्यक्ति को सुनाई न दे |
  • पूजा से बचे पदार्थों को एकत्रित करके नदी में ले जाकर प्रवाहित करना चाहिए |
  • साधना किसी योग्य गुरु के निर्देशन में ही करनी चाहिए |
  • साधना काल में मल-मूल विसर्जन की विवशता होने पर पुनः हाथ-पैर , मुँह आदि धोकर ही बैठे और एक माला प्रायश्चित की फेरें |
  • प्रातः काल जप करते समय माला नाभि के सामने, दोपहर को ह्रदय के सामने और सांयकाल मस्तक के सामने होनी चाहिए |
  • साधना या मंत्र जप के समय दिशा का अवश्य ध्यान रखें | साधना को उपरोक्त नियमों का पालन करते हुए व मन में द्रढ़ निश्चय के साथ शुरू करना चाहिए | मन में किसी प्रकार के नकारात्मक भाव न रखे जैसे : साधना में असफलता के भाव | अपने ईष्ट देव के प्रति पूर्ण निष्ठा और समर्पण भाव के साथ अपनी साधना को सम्पूर्ण करना चाहिए |

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