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क्या होता है जब कुलदेवता /देवी रुष्ट /असंतुष्ट होते हैं ?

 कुलदेवता प्रत्येक वंश के उत्पत्ति कर्ता ऋषि के वह आराध्य हैं जिनकी आराधना उन्होंने अपने वंश की वृद्धि और रक्षा के लिए अपने वंश के लिए उपलब्ध सामग्रियों के साथ अपने लिए उपयुक्त समय में की थी |यह कुलदेवता हर ऋषि के लिए अलग -अलग थे जो उनके प्रकृति और गुणों के अनुकूल थे |कुछ ने कुलदेवी की आराधना इस हेतु की तो कुछ ने कुलदेवता को मुख्य स्थान दिया अपने वंश की सुरक्षा -संरक्षा और पालन के लिए |जिस ऋषि और वंश की जैसी प्रकृति ,कर्म और गुण थे वैसे उन्होंने अपने कुलदेवता और देवी चुने किन्तु यह ध्यान रखा की सभी शिव परिवार से ही हों |कारण की शिव परिवार ही उत्पत्ति और संहार दोनों करता है |इनके बीच के कर्म ही अन्य देवताओं के अंतर्गत आते हैं |दूसरा कि शिव परिवार ही ऊर्जा का वह माध्यम है जो ब्रह्माण्ड से लेकर पृथ्वी तक समान रूप से व्याप्त है |तीसरा कि शिव परिवार की ऊर्जा ही पृथ्वी की सतह पर सर्वत्र व्याप्त है जो सतह पर पृथ्वी की ऊर्जा से मिलकर अलग स्वरुप ग्रहण करता है |चौथा पृथ्वी की समस्त सतही शक्तियाँ जैसे भूत ,प्रेत ,पिशाच ,ब्रह्म ,जिन्न ,डाकिनी ,शाकिनी ,श्मशानिक भैरव -भैरवी ,क्षेत्रपाल आदि सभी शिव के अधीन होते हैं |इन कारणों से सभी कुलदेवता शिव परिवार से माने गए |कुलदेवता /देवी वह सेतु हैं जो व्यक्ति /वंश और ब्रह्माण्ड की ऊर्जा में समन्वय का काम करते हैं साथ ही यहाँ की स्थानिक शक्तियों से सुरक्षा भी करते हैं |व्यक्ति सीधे ईष्ट या परम ऊर्जा या ब्रह्मांडीय ऊर्जा तक नहीं पहुँच सकता लौकिक रूप से जब तक की एक निश्चित उच्च अवस्था तक न पहुँच जाए |उस उच्च अवस्था तक जाने के लिए भी इन देवता की आवश्यकता होती है साथ ही परिवार की सुरक्षा -सम्वर्धन के लिए भी इनकी आवश्यकता होती है चूंकि ब्रह्माण्ड की उच्च ऊर्जा व्यक्ति से तो जुड़ सकती है पर पूरे परिवार से नहीं जिद्ती जब तक की कोई उस योग्य न हो |कुलदेवता /देवी पूरे परिवार /वंश से जुड़े होते हैं |यह वह बैंक हैं जो मुद्रा विनिमय जैसी क्रिया कर आपके द्वारा प्रदत्त मुद्रा अर्थात पूजन -भोज्य -अर्पित पदार्थ को बदलकर आपके पितरों तक ,आपके ईष्ट तक पहुंचाते हैं |यह वह चौकीदार हैं जो आपके वंश की ,परिवार की ,व्यक्ति की सुरक्षा २४ घंटे और १२ महीने करते हैं ताकि आपको किसी नकारात्मक ऊर्जा से कष्ट न हो |इनके न होने से अथवा इनके रुष्ट होने से अथवा इनके असंतुष्ट होने से निम्न प्रकार की स्थितियां आपके परिवार में उत्पन्न हो सकती हैं |[१]  खानदान में गया श्राद्ध ,नाशिक या हरिद्वार श्राद्ध आदि की प्रक्रियाएं कर देने पर भी पित्र दोष के प्रभाव समाप्त नहीं होते |कारण की उन तक अर्पित की गयी सामग्री और श्राद्ध नहीं पहुँचता |कुलदेवता और इनसे जुड़े विश्वदेवा द्वारा यह कार्य किया जाता है |यहाँ तक की पितरों के निमित्त किया गया कोई भी प्रयास असफल होता है और पित्र अतृप्त रहते हैं जिससे उनका कोप बना रहता है |[२] आपके ईष्ट तक आपकी पूजा नहीं पहुँचती जिससे आपके सारे पूजा -पाठ व्यर्थ जाते हैं |आपकी मुक्ति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है |[३] गया श्राद्ध ,नाशिक श्राद्ध अथवा हरिद्वार श्राद्ध में सामान्य पित्र तो जा भी सकते हैं किन्तु बली और असंतुष्ट -अतृप्त पित्र नहीं जाते |कुलदेवता उन्हें कोई निर्देश नहीं देते |इस प्रकार पित्र दोष बना ही रहता है जबकि व्यक्ति भ्रम में होता है की उन्होंने श्राद्ध करके सबको बैठा दिया |[४] कुलदेवता को भूलने से ,उनकी ठीक से पूजा न होने से ,उन्हें समयानुसार याद न करने से पित्र स्वयं रुष्ट हो जाते हैं क्योंकि उनके द्वारा पूजित और स्थापित देवता की उपेक्षा हो रही होती है |इससे भी पित्र कोप उत्पन्न होता है और पित्र अपने वंशज की कोई सहायता नहीं करते |[५] पित्र दोष की उपस्थिति वाली समस्त समस्याएं अपने आप उपस्थित होती रहती हैं चूंकि इनका सीधा सम्बन्ध पितरों से होता है ,जैसे -मानसिक अवसाद होता है ,चिंताएं घेरे रहती हैं |व्यापार में नुक्सान होता है ,सबकुछ ठीक लगने पर भी उपयुक्त आय नहीं होती |अनायास हानि हो जाती है |धोखा मिलता है |कर्मचारी /सहयोगी स्वार्थी हो जाते हैं |परिश्रम के अनुसार फल नहीं मिलता ,उन्नति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं |सभी प्रकार की योग्यता ,क्षमता होने पर भी उपयुक्त उन्नति नहीं होती |वैवाहिक जीवन में समस्याएं,अथवा विवाह न होना ,विवाह बाद भी अलगाव हो जाना ,जीवनसाथी के साथ कलहपूर्ण जीवन होना ,बिन बात के झगड़े उत्पन्न होना होता है | कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है |परिस्थितियां अनुकूल होने पर भी काम नहीं बनता |[६] कुलदेवता /देवी की रुष्टता अथवा अनुपस्थिति पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते, कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए , उसका शुभ फल नहीं मिल पाता |क्योंकि देवताओं तक उपाय और पूजा नहीं पहुँचता |[७]  आय -व्यय में सदैव असंतुलन बना रहता है | प्रत्यक्ष खाने वाले ४ होने पर भी खर्च १० लोगों के बराबर होता है |यह तो दीखता है की इतना आय हुआ ,पर कहाँ गया यह समझ में नहीं आता |बचत कम हो जाती है या समाप्त हो जाती है या होती ही नहीं |समझ में नहीं आता की आने वाला रुपया जा कहाँ रहा है जबकि परिवार लायक पर्याप्त आय होती है | मांगलिक कार्यों में बाधा आती है |बच्चों के विवाह नहीं हो पाते |उनकी उच्च शिक्षा में बाधा आती है |उनका दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं होता | अनायास के खर्चे आते हैं |दुर्घटनाएं और बीमारियाँ होती हैं जिनपर बेवजह खर्च होता है |छोटी बीमारी भी बढती जाती है ,जल्दी ठीक नहीं होती या बार बार होती है |बिना किसी उपयुक्त कारण के गंभीर बीमारी हो जाती है या ऐसी बीमारी हो जाती है जो चिकित्सकीय रूप से बीमारी ही नहीं होती या चिकित्सक पकड नहीं पाते की समस्या कहाँ और क्या है | मानसिक स्थिति हमेशा संतुलित नहीं होती |दिनचर्या अनियमित हो सकती है |[८]  व्यापार /व्यवसाय में लगाया हुआ रुपया डूब जाता है |व्यवसाय बंद हो जाता है या हानि के कारण अथवा विवाद के कारण बंद करना पड़ जाता है | प्रापर्टी ,जमीन -जायदाद विवाद में फंस जाती है |अनावश्यक मुकदमे ,विवाद का सामना करना पड़ता है |घर में घुसते ही सर भारी हो जाता है |घर में रहते हुए चिडचिडापन रहता है ,बात बात में गुस्सा आता है ,उलझन रहती है ,याददास्त कमजोर होती जाती है |पूजा -पाठ में मन नहीं लगता ,अरुचि हो जाती है |पूजा -पाठ का कोई परिणाम भी नहीं मिलता और स्थितियां जटिल ही होती जाती हैं |अनायास और अनावश्यक कर्ज की स्थिति उत्पन्न होती है जबकि क्षमताएं ,योग्यताएं और आय के स्रोत पर्याप्त दीखते हैं ,पर वह काम नहीं करते |लिया कर्ज जल्दी उतरता नहीं क्योंकि अपेक्षित आय समय पर नहीं हो पाती | दिया हुआ पैसा समय पर या तो मिलता नहीं या डूब जाता है |लोग धोखा देते हैं |[९]  भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है | मुक्ति मार्ग में बाधाएं उत्पन्न होती हैं ,मुक्ति के लिए अनुकूल ग्रह स्थिति भी मुक्ति नहीं दिला पाती और पित्र व्यक्ति को मुक्त नहीं होने देते |संतानें विकारयुक्त और भाग्य में पित्र दोष लिए उत्पन्न होती हैं |इस कारण खानदान पतन की ओर अग्रसर हो जाता है |कुछ पीढ़ियों बाद खानदान का नाम लेने वाला तक नहीं बचता |ऐसी संताने उत्पन्न होती हैं जो खानदान को कलंकित करती हैं ,दुर्व्यसनी ,दुर्जन होती हैं जिन्हें समाज तिरस्कृत कर देता है और जो दंड पाती हैं |अंततः विनष्ट हो जाता है परिवार अथवा बिखर जाता है |[१०] बाहरी शक्तियाँ ,भूत -प्रेत ,पिशाच -ब्रह्म ,तांत्रिक अभिचार ,किया -कराया ,टोना -टोटका बिना रोक -टोक व्यक्ति और परिवार पर प्रभावी हो जाता है |कोई इन्हें रोकने वाला ,परिवार की सुरक्षा करने वाला नहीं होता |[११] कोई बाहरी शक्तिशाली शक्ति घर में स्थायी वास बना सकती है ,किये जा रहे पूजा पाठ लेकर अपनी शक्ति बढ़ा सकती है ,फिर घर -परिवार पर मनमानी कर सकती है अथवा अपनी तृप्ति करवा सकती है |पीढ़ियों तक स्थायी हो पूरे खानदान को तबाह कर सकती है अथवा देवता का स्थान ले सकती है |[१२] पित्र तृप्ति अथवा शांति के कोई उपाय काम नहीं करते |श्राद्ध पितरों को नहीं मिलता |पित्र गया ,हरिद्वार ,नासिक आदि में जाकर नहीं बैठते और घर नहीं छोड़ते जिससे इनकी समस्या लगातार बनी रहती है |[१३] पित्र दोष का सीधा सम्बन्ध कालसर्प दोष से होता है ,अतः इस स्थिति में कालसर्प दोष आदि के लिए किये गए प्रयास भी असफल होते हैं |[१४] सूर्य का सम्बन्ध पितरों से होता है अतः सूर्य का फल कम मिलता है |देवताओं को पूजा न मिलने से ग्रह शान्ति के उपाय असफल हो जाते हैं |कुंडली में दोष होने पर किया गया कोई भी उपाय अपेक्षित परिणाम नहीं देता |उपरोक्त स्थिति होने पर भले धनवान व्यक्ति हो भाग्य के बल से ,पर व्यक्ति किसी समस्या से तबाह होता है ,खानदान तबाह होता है विभिन्न कारणों से ,पितरों की न तो तृप्ति हो पाती है न मुक्ति हो पाती है ,देवी -देवता की पूजा -आराधना असफल होती है और मुक्ति के मार्ग बंद हो जाते हैं |अंततः व्यक्ति अपनी पीढ़ियों के लिए भी ऐसा कहने की स्थिति में नहीं होता की उनकी सुरक्षा -संरक्षा -सम्वर्धन के लिए उसने कोई दैवीय -आध्यात्मिक प्रयास किये |अगली पीढियां भी कष्ट उठाती हैं अधिक मात्रा में किसी न किसी रूप में |जब कभी किसी के यहाँ ऐसा हो की कुलदेवता /देवी का पता न हो तो उनको विशेष पद्धति से इस प्रकार स्थापित किया जाना चाहिए की वह शिव परिवार से भी हों ,शक्तिशाली भी हों ,उनको पर्याप्त पूजा मिले और नकारात्मक शक्तियों को दूर करें ,पित्र दोष के प्रभाव समाप्त करें ,पित्र संतुष्ट हों और देवताओं की की जा रही पूजा सफल हो |कुलदेवता देवी रुष्ट ,असंतुष्ट हों तो वह सभी कार्य न किये जाएँ जो उनको रुष्ट और असंतुष्ट करते हों |जिस प्रकार उनकी संतुष्टि हो ,प्रसन्नता हो वह किया जाए |तिहरा लाभ होता है ईष्ट देवता अथवा देवताओं को पूजा मिलती है ,पित्र संतुष्टि होती है तथा पितरों के निमित्त हो रहे प्रयास सफल होते हैं ,परिवार की सुरक्षा -संरक्षा -सम्वर्धन होता है

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