एक बार इन्द्रासन पर नजर गड़ाए दैत्य दुर्गम ने ब्रह्माजी ककी कठोर तपस्या कर वरदान में उनसे सारे वेद माँग लिए। वह जानता था कि वेदों के न रहने से उसके माध्यम से होने वाले यज्ञादि बंद हो जाएँगे। तब देवताओं को हवन का भाग मिलना बंद हो जाएगा और वे शक्तिहीन हो जाएँगे। तब वह आसानी से देवलोक पर कब्जा कर लेगा। ऐसा ही हुआ भी।
पराजित देवता भागकर गुफाओं में छिप गए। इधर वैदिक क्रियाएँ बंद होने से संसार में अनावृष्टि और अकाल की स्थिति पैदा हो गई। तब मानव और देवों ने मिलकर भगवती की उपासना की। प्रसन्न देवी ने सैकड़ों नेत्रों वाले दिव्य रूप में प्रकट होकर नौ रात्रियों तक अपने नेत्रों की जलधाराओं से वर्षा की। इससे धरती फिर हरी-भरी हो गई।
उन्होंने भक्तों को खाने के लिए फल और शाक भी दिए। इस कारण उन्हें शाकम्भरी कहा जाने लगा। सैकड़ों नेत्रों के कारण वे शताक्षी कहलाईं। उन्होंने भक्तों को यह भी आश्वासन दिया कि वे दुर्गम से वेद वापस लेकर उन्हें दे देंगी।
यह जानकर क्रोधित हुआ दुर्गम विशाल सेना के साथ देवी से युद्ध करने चल पड़ा। उसे आता देख देवी सभी भक्तों को एक तेजोमय चक्र के अंदर सुरक्षित खड़ा करके स्वयं उससे युद्ध करने लगीं।
पराजित देवता भागकर गुफाओं में छिप गए। इधर वैदिक क्रियाएँ बंद होने से संसार में अनावृष्टि और अकाल की स्थिति पैदा हो गई। तब मानव और देवों ने मिलकर भगवती की उपासना की। प्रसन्न देवी ने सैकड़ों नेत्रों वाले दिव्य रूप में प्रकट होकर नौ रात्रियों तक अपने नेत्रों की जलधाराओं से वर्षा की। इससे धरती फिर हरी-भरी हो गई।
उन्होंने भक्तों को खाने के लिए फल और शाक भी दिए। इस कारण उन्हें शाकम्भरी कहा जाने लगा। सैकड़ों नेत्रों के कारण वे शताक्षी कहलाईं। उन्होंने भक्तों को यह भी आश्वासन दिया कि वे दुर्गम से वेद वापस लेकर उन्हें दे देंगी।
यह जानकर क्रोधित हुआ दुर्गम विशाल सेना के साथ देवी से युद्ध करने चल पड़ा। उसे आता देख देवी सभी भक्तों को एक तेजोमय चक्र के अंदर सुरक्षित खड़ा करके स्वयं उससे युद्ध करने लगीं।
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