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अब पीछे मत हटो,शत्रु की तो येसी की तैसी

प्रभु,कितने सवाल है मन मे..............
कोई बात नहीं,इस कार्य मै आपके साथ हु,कुछ भी ज्यादा सोचो मत,बात जान पे बीतने वाली है तो अब पीछे मत हटो,शत्रु की तो येसी की तैसी...................,खत्म ही कर देगे इनको,ताकि दूसरा कोई मुह उठाके हमसे शत्रुत्व ना करे.......
परंतु किसी भी शत्रु पे प्रयोग करना हो तो 100 बार तो सोच लेना क्या यह कार्य करना उचित होगा या नहीं॰
मुजे आप सभी पे विश्वास है,आप गलत कदम नहीं उठाओगे इसलिये यह दुर्लभ प्रयोग दे रहा हु......सदगुरुजी मुजे क्षमा करे,यही प्रार्थना करता हु........
सामाग्री:- शमशान गुटिका-जिसे आसन के नीचे स्थापित करना है ताकि शमशान मे जाकर प्रयोग करने का काम न पड़े,सियार सिंगी-जिसे यमपाश मंत्रो से सिद्ध किया जाता है,जैसे यमराज अपना यमपाश फेकते है और प्राणी का जान ले लेते है उसी तरहा इसको भी कार्यान्वित किया जाता है,महाकाली यंत्र-इसे जागरण क्रिया से ही जगाया जाता है,ताकि माँ शत्रु को समर्पित करने के बाद स्वीकार कर सके,काली हकीक माला-ज्यो शीघ्र कार्य सिद्धि मंत्रो से चैतन्य होती है,शमशान पत्थर-ज्यो इतर योनि मंत्रो से जागरण हो॰
साधना विधि- साधक सर्वप्रथम गणपति और गुरु पूजन करे,सदगुरुजी से आज्ञा ले और कार्यसिद्धि हेतु प्रार्थना करे
काले रंग के वस्त्र धारण करके काले रंग के आसन पर बैठे,आसन के नीचे शमशान गुटिका रखे,सामने किसी बाजोट पर काला वस्त्र बिछाये,फिर यंत्र को उसपे स्थापित करे और यंत्र पे कुंकुम डाले,अब यंत्र पर सियार सिंगी स्थापित कर दीजिये,और यंत्र के साथ एक चावल का ढेरी बनाए उसापे भी कुंकुम डालकर शमशान पत्थर स्थापित करे,आपको जिस शत्रु का काम करना है उसके नाम से एक निंबू का बली देकर नींबू का रस शमशान पत्थर पे निचोड़ दे,और मारन मंत्र का २१ माला जाप रोज 10 बजे रात्रि मे ९ दिन तक करे,९ वे दिन रात्रि मे हवन करे और हवन मे सियार सिंगी डाल दे, शमशान पत्थर को शत्रु के घर के आस-पास गाड़ दे या फिर पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दे,साधना मे शत्रु का फोटो हो तो कार्य जल्दी संपन्न हो जाएगा या फिर जाप करते समय शत्रु का तीव्र स्मरण करो,यंत्र-माला १० वे दिन जल मे समर्पित करदे जब के आपका कार्य तो ९ दिन ही पूरा हो जायेगा॰
रक्षा मंत्र
इस मंत्र को मुख्य मंत्र से पूर्व २१ बार मंत्र बोलकर काली सरसो दसो दिशाओ मे फेखों,ताकि आपकी भूत-प्रेतो से रक्षा हो सके॰
॥ हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालीके घोर दंष्ट्रे प्रचंड चंडनायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हु फट ॥
मारण मंत्र-
॥ ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं अमुक शत्रु मारय मारय ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं फट ॥

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