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हिमालय के सबसे बड़े रहस्य भैरवी

भैरवी एक ऐसा रहस्य जिसने स्त्री की परिभाषा ही बदल कर रख दी है आखिर ये भैरवी कौन है कहाँ से आई है लोगों में भैरवी का इतना खौफ क्यूँ क्या किसी ने भैरवी को देखा है भैरवी के अस्तित्व पर है कई सवाल लेकिन जबाब कोई नहीं था तो जाहिर है ऐसे में दुनिया की निगाहें उत्तर ढूँढने के लिए हिमालय की सबसे बड़ी रहस्य पीठ कौलान्तक पीठ की ओर नजरें उठा कर सवाल के जबाब की प्रतीक्षा करने लगी क्योंकि कभी एक ऐसा समय भी रहा है जब कौलान्तक पीठ के महासाधकों को कुलाचार के लिए विश्व भर में बदनाम कर दिया गया था ये षड़यंत्र था उन धर्म के कथित ठेकेदारों का जिनकी रोटी और चापलूसी को समाज ने वास्तविकता जानने के बाद बंद कर दिया था जो औरत के साधना,पूजा,गायत्री,योग,तंत्र,दीक्षा को नकारने के लिए धर्म ग्रंथों को मनमाने तरीके से तोड़ मरोड़ रहे थे या तो औरत उनके कहे को मानती या फिर धर्म से ही दूर हो जाने को विवश थी ऐसे में कौलान्तक पीठ हिमालय ने जो स्वतंत्रता स्त्री को दी वो इन कथित स्त्री विरोधी धर्माचार्यों को सहन नहीं हुई उनहोंने कौलाचारियों के बारे में कुछ ऐसी बातें फैला दी जिससे आम जन मानस उनसे कट जाए हालाँकि बातें निराधार नहीं थी लेकिन सत्य भी नहीं कौलान्तक पीठ की तंत्र सधानायों में दीक्षा लेने वाली हर स्त्री को भैरवी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है माँ शक्ति शिव की संगिनी माँ पारवती को तंत्र ग्रंथों में भैरवी कह कर ही शिव भी पुकारते हैं कोई भी तंत्र मार्गी स्त्री भैरवी और पुरुष भैरव के संबोधन से ही पुकारा जाता है यहाँ एक बहुत बड़ी कमी थी वो ये की सनातन मान्यता के अनुसार गुरु शिष्य के बीच विवाह नहीं हो सकता और एक ही गुरु से दीक्षित स्त्री पुरुष परस्पर विवाह नहीं कर सकते क्योंकि वे गुरु भाई और गुरु बहन होते हैं लेकिन कौलान्तक पीठ का तर्क विपरीत था की स्त्री पुरुष के धर्म गुरु अलग अलग होने के कारण गृहस्थी में तनाव रह सकता है इस लिए सबसे पहले उनहोंने दो विपरीत नियमों को स्वीकार किया महारिशी अगत्स्य जिनको आधा हिमालय कहा जाता है के पास समस्या ले जाई गयी और उनहोंने दिया अनूठा समाधान की गुरु जो जोगी होता है भी विवाह करने की पूरी स्वतंत्रता रखता है साथ ही जोगने भैरावियाँ साधिकाएँ भी गुरु गोत्र में विवाह कर सकती हैंलेकिन कुल गोत्र में नहीं जिसका कारण रक्त का एक होना माना जाता है इस प्रकार जब ये सुविधा समाज को मिल गयी तो जाहिर है की कौलान्तक पीठ में साधकों की भीड़ इक्कट्ठा होने लगी जिस कारण बहुतों से यह सहन न हो सका प्रचलित कथा के अनुसार कौलाचारियों में एक दिव्य साधिका पैदा हुई जिसका नाम था अपरा भैरवी जिसने दस महाविद्याओं को सिद्ध कर कौतुक विद्या में महारत हासिल कर ली और सबसे ऊपर जा बैठी क्योंकि कौतुक विद्या जिसे आज कल जादूगरी कहा जाता है जिसका मूल ट्रिक या चातुर्य होता है को तत्कालीन लोग भली प्रकार नहीं समझ पाते थे इस लिए जब अपरा भैरवी कौतुक दिखाती तो लोग दांतों तले अंगुलियाँ दवा देते लोगों के मध्य प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच चुकी ये जादूगरनी भैरवी किस्से कहानियों में भयंकर रूप धारण करने लगी इसके जीवन के एक एक भाग को कहानी में जोड़ा गया बस यहीं से शुरुआत होती है भैरवी की
ऋग्वेद में सांकेतिक रूप से पञ्च चक्रों का विवरण है इन्ही पञ्च चक्रों में से एक है भैरवी चक्र ये चक्र दो प्रकार के हैं एक चीनाचारा चक्र पूजा और शैवमतीय चक्र पूजा हिमालयों में चीनाचारा पूजा लागु हुई यहाँ गौर करने वाली बात ये है की चीन,महाचीन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के दो गांवों का ही प्राचीन नाम है न की वर्तमान चीन से उसका कोई लेना देना है इस पद्धिति में पंचमकारों को जोड़ा गया बस यहीं पञ्च मकार वो तत्व हैं जिनके कारण सात्विक पंथियों को शोर मचाने का अवसर मिल गया लेकिन ये उनकी सबसे बड़ी मूर्खता थी क्योंकि उनहोंने भी वास्तविकता से मुह मोड़ लिया वास्तविकता तो ये थी की हिमाचल उत्तराँचल जम्मू कश्मीर नेपाल तिब्बत के बड़े हिस्सों में भयंकर हिमपात होता था वहां छः से सात महीनो तक बर्फ गिरी रहती थी जिसकारण हरियाली का एक भी पत्ता तक नहीं होता था ऐसे में इन क्षेत्रों के लोगो ने एक आसान सा उपाय खोज निकाला और वो था की भेड़ बकरियों को मार कर उनके मांस पर जीवित रहना और कड़ी ठण्ड और सख्त हवाओं से बचने के लिए आयुर्वेद के कथनानुसार हलकी मदिरा को औषधि के रूप में लेना जो तब से ले कर आज तक इन क्षेत्रों में प्रचलित है यहाँ के बच्चे महिलाएं युवा वृद्ध सभी सामान रूप से माँसाहारी हैं और मदिरा का सेवन भी करते हैं और तो और पवित्री करण तथा पूजा के लिए भी मदिरा का ही प्रयोग होता है क्योंकि भैरवी साधिका अपरा भैरवी इन्हीं क्षेत्रों की रहने वाली थी इस लिए लोगों ने कहानियों में जोड़ दिया की भैरवी मांस खाती है भैरवी मदिरा पीती है भैरवी मुर्दे पर बैठ कर करती है साधना ये बात बिलकुल ही गलत है की भैरवी मुर्दे पर बैठ कर साधना करती है वास्तव में मरे हुए बकरे की खाल याक नाम के हिमालयन प्राणी की खाल पर बैठ कर भैरव-भैरवी साधना करते थे याक की सफेद खाल को तंत्र में शव कहा जाता है जिससे बनी शव साधना भैरव-भैरवी पूजा में हस्त मुद्राओं और योग मुद्राओं को जोड़ते है इसीलिए मुद्रा शब्द भी जुड़ गया प्राकृतिक तौर पर भैरवी का चेहरा मंगोलियन था जैसा की चीन या जापान अथवा तिब्बत की कोई सुंदरी हो और इन स्थानों में स्त्री को बहु पति रखने की स्वतंत्रता थी सन 2000तक हिमाचल के लाहुल स्पीती जिला चंबा और किन्नौर के कुछ भागों में ऐसे परिवार थे जिनमे की एक ही औरत के चार पति थे इन भागों में लिंगानुपात इतना गिर गया था की ऐसी नौबत आन पड़ी थी इस कारण भैरवी पर सभोग करने का कलंक लगा दिया गया यहाँ ये स्पष्ट है कि हर पत्नी अपने पति से सम्बन्ध बनाती है तब तो कोई गलत नहीं कहता भैरवी केवल अपने भैरव से ही सम्बन्ध बनती थी क्योंकि दोनों पति पत्नी ही थे बस बताने की कला है किसी ने कहानी को ऐसे पेश किया की भैरवी आतंक्वादिनी ही लगने लगी भैरवी को लोक कथाओं ने शीर्ष पर बिठा दिया क्योंकि वे उसके कथित चमत्कारों से डरे हुए थे लेकिन भैरवी तो एक आम साधिका ही थी लोगों ने कहा की भैरवी के पास देवी-देवताओं से भी ज्यादा शक्तियां हैं धीरे धीरे रहस्य बढ़ता गया समय के साथ साथ जब भोजन की बस्त्रों की उपलब्धता हो गयी तो भैरवी ने ये सब छोड़ दिया और सात्विक भैरवी प्रकाश में आई लोगों ने यहाँ तक कहा कि भैरवी को देखने वाला जीवित नहीं रहता रात के घुप्प अन्धकार में बाल फिलाये कोई स्त्री जंगल में अकेली दिख जाये तो कमजोर दिल वाला मरेगा ही इसमें भैरवी का क्या लेना देना हिमालयों के क्षेत्रों में आज भी कई सात्विक भैरवियाँ हैंजिनमे से एक हेमाद्री नाम कि भैरवी का मिलन कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज से सन 1999के अंत में कुल्लू के निकट मणिकरण के पर्वतों पर हुआ और क्योंकि महायोगी कौलान्तक पीठ के पीठाधीश्वर है इस कारण उनको धर्मानुसार विवाह करने कि पूर्ण स्वतंतत्रता हासिल है हेमाद्री ये बात जानती थी और ये भी कि महायोगी युग पुरुष बनने के लक्षणों से भरे हैं इसलिए वो उनके आप पास रहने लगी लेकिन महायोगी जी का उद्देश्य साधना था न कि विवाह उनहोंने हेमाद्री को आश्रम जो कि तब शक्ति समुदाय के नाम से हिमाचल के मण्डी जिला में स्थित था आने का निमंत्रण दिया बालीचौकी हेमाद्री का कई बार आना हुआ कई लोगो ने उसे देखा है वो कोई हवा में उड़ने वाली भैरवी नहीं बल्कि साधारण साधिका थी अब क्योंकि थी तो भैरवी ही इस लिए लोगों को डरने के लिए इतना ही काफी था 2005के अंत में हेमाद्री कुल्लू कौलान्तक पीठ आई और महायोगी जी के साथ कई दिनों तक रही महायोगी जी के हेमाद्री के साथ कई फोटो उपलब्ध हैं वो महायोगी जी को बहुत स्नेह करती थी और विवाह का प्रस्ताव भी रखा लेकिन महायोगी जी ने किसी कारणवश ये प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया हेमाद्री भैरवी पिन पार्वती नाम के दर्रे के निकट साधना करने की बहुत इच्छुक थी और महायोगी जी उस क्षेत्र के नायक है इसलिए महायोगी जी हेमाद्री को ले कर पिन पारवती कि और चले गए जहाँ कई लोगो ने मणिकरण क्षेत्र से आगे उनको देख भी लिया महायोगी और हेमाद्री के कई महीनो साथ रहने के कारण लोगों ने फिजूल की कई बाते बनाना शुरू कर दिया जो कि हमारे देश को बिरासत में मिला है किसी के साथ बहन भी जा रही हो तो नजरें लोगों की गलत ही समझती हैं क्योंकि मनोवैज्ञानिक रूप से वे ही काम कुंठाओं से ग्रसित हैं इस कारण महायोगी जी ने उनको मजबूरन आश्रम से चले जाने को कहा जिससे हेमाद्री को बहुत दुःख हुआ बो रोती हुई आश्रम से चली तो गयी लेकिन महायोगी जी को कहा कि हिमालयपुत्र भैरवी होने के कारण मेरा कहीं भी सम्मान नहीं है लोग जानते ही नहीं कि भैरवी क्या है तो आप वचन दीजिये कि भैरवी के गुप्त विषय को लोगों तक ले कर आयेंगे महायोगी जी ने आश्वासन दिया हेमाद्री भैरवी के जाने से महायोगी जी भी कुछ दुखी हुए जिसका कारण भारतीय मानसिकता का इतना बुरा रूप देखना था फिर भैरवी के विषय पर महायोगी जी ने अपना शोध शुरू किया और सामने आई सात्विक भैरवी जो सब बुराइयों से दूर पवित्र साधिका थी लेकिन समाज और मीडिया के मन से छवि को हटाना जरूरी था महायोगी जी ने भैरवी को समझाने के लिए भैरवी साधना के नाट्य रूपांतरण का सहारा लिया बस इसी दौरान प्रिंट मीडिया में पहली खबर लगी लेकिन बहुत ही सुन्दर एवं सटीक पत्रकारों ने महायोगी जी के शोध को जनता के सामने लाने कि कोशिश की लेकिन यही खबर जब इन्टरनेट मीडिया के द्वारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया तक पहुंची तो एक बार फिर भैरवी का रूप बदल गया सात्विक भैरवी फिर से काल भैरवी हो गयी शोध कि धज्जियाँ उड़ा दी गयी देश के एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल ने तो महायोगी जी को और उनके शोद्ध को ही गलत करार दे दिया कुल्लू में कार्यरत एक तथाकथित पत्रकार ने पत्रकारिता का गला घोट कर टीवी चैनल के नाट्य रूपांतरण को सच समझ कर समाचार पत्र में विचित्र अंदाज में छाप दिया कम दिमाग के इस पत्रकार ने जो पत्रकारिता का बलात्कार किया है वो सदियों के लिए अमर हो गया इसके बाद देश के सभी टीवी चैनल भैरवी को बार बार दोहराते रहे क्योंकि भैरवी एक औरत है उनको शायद सत्य से कुछ लेना देना नहीं ऊपर से वो कथित समझदार लोग जिन्होंने हिमालयन कल्चर देखा ही नहीं लेकिन भैरवी पर कुर्सियों में बैठ कर टिका टिप्पणी करने लग गए दिमागी खुजली को मिटाने का अच्छा तरीका मिला गया इधर महायोगी जी पर हुए झूठे षड़यंत्र के कारण रोष में आ कर आश्रम के कुछ शिष्यों ने महायोगी जी के 3000पन्नो के शोध पत्र को कि जला दिया और इस घटना से दूर रहने का आग्रह करने लगे लेकिन महायोगी भी महायोगी ही हैं उनहोंने कहा देखते है कि झूठ जीतता है या सच अभी सात्विक भैरवी पर एक बार फिर महायोगी जी का शोध शुरू हो गया है उनका उद्घोष है कि मनहूस और अश्लीलता के आबरण से निकाल कर मैं जगत में सबसे पवित्र भैरवी स्थापित कर दूंगा हिमालय के माथे पर लगा कलंक मिट जाएगा स्त्री को धर्म कि स्वतंत्रता मिलेगी भैरवी साधिकाएँ गौरवमय जीवन जी सकेंगी मीडिया में भी कुछ लोग सच्ची पत्रकारिता करते हैं वो भैरवी का वास्तविक रूप एक न एक दिन जरूर लोगों तक ले कर आयेंगे और महायोगी का हेमाद्री को दिया बचन भी पूरा होगा और हिन्दू धर्म के कुत्सित समझे जाने वाले स्वरुप भैरवी को लोग पवित्रता और सम्मान से देवी कि तरह देखेंगे स्त्रियों का विरोद्ध धर्म में बंद होगा स्त्री पुरुष सामान रूप से महासाधानाएं कर सकेंगे कौलान्तक पीठ ने तो सदियों से नारी को सामान भाव से देखा है जिसका परामान है कौलान्तक पीठ कि कई परम्पराएँ जिनमें स्त्रियों को देवी के रूप में पूजा जाता है एक उदहारण है जिन्दा लक्ष्मी देश और सम्प्रदाय में खुशहाली रहे इसके लिए कौलान्तक पीठ हिमालय के जंगलों में करता है महालक्ष्मी को जीवित एवं जागृत जिसे महालक्ष्मी का महाआवाहन भी कहा जाता है जिसमे स्वेच्छा से कौलान्तक संप्रदाय की साधिकाएँ अपने को नामजद करती है कि उनके माध्यम से महालक्ष्मी को बुलाया जाए चार महीनो तक कड़ी साधना के बाद वो कन्या जिसमें महालक्ष्मी का आवाहन होना है जिसे देवकन्या कहा जाता है तैयार हो पाती है कि साधना पूरी हो पूरण सात्विक निति नियमों का पालन सरल नहीं फिर सारे काम काज के बाद भी एक साल तक बनो में रहना साधना करना आदि आसान नहीं पर ये प्राचीन मान्यताएं हैं जिनका पालन पीठाधीश्वर होने के नाते न चाहते हुए भी महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी को करना ही पड़ेगा लेकिन कथित बुद्धिबादी ये सब कहाँ देख सकते हैं जबकि महायोगी नहीं चाहते कि कोई लड़की या स्त्री भैरवी या देवकन्या या लक्ष्मी का रूप धारण करे लेकिन सनातन को नकार देना भी उनके बसमें नहीं वो केवल तामसिक तत्वों के विरोधी हैं बलि प्रथा के सबसे बड़े बिरोधी होने का खामियाजा वो बचपन में ही भुगत चुके हैं नशा विरोधी कार्यों के कारण उनको लोग समाजसेवी भी मानते हैंलेकिन भैरवी की हकीकत समझाने के लिए समाज शास्त्र  खगोल शास्त्र साहित्य इतिहास लोक कथाओं का व परम्पराओं का ज्ञान चाहिए जो कथित कुर्सी ओर ऐसी धारियों के पास नहीं वो तो कुछ किताबों लेखकों या इंटरनेट पर निर्भर हैं उनकी हालत देख कर तो उनपर दया आती है पर ज्ञानी होने का अहंकार कहाँ जाता है इन सबसे सिद्ध होता है कि भैरवी को समझना जहाँ बहुत जटिल हैं वहाँ महायोगी जी के कार्य काबिले तारीफ है कि वो भैरवी के सबसे शुद्ध रूप को सामने लाने में काफी सफल हुए मेरे जीवन का ये सौभाग्य है कि मैं हिमालय के सबसे प्रखर योगी जिनको महाक्रोधी मुद्रानायक भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है की कृत्रिम क्रोध की मुद्राएँ दिखने वाला महायोगी चक्र राज सत्येन्द्र नाथ जी महाराज जिनकी थाह पाना किसी के बस में नहीं जो अपनी प्रशंसा चाहते ही नहीं बाल्यकाल से तपस्या को प्रमुखता देते हैं इस सतयुगी योगी के निकट रह कर भी उनको नहीं जाना जा सकता साधना ही उपाय है फिलहाल भैरवी तो परदे से बाहर आ ही गयी आलोचनाएँ तो महापुरुषों की प्रियातामायें होती हैं वे ही उनको महान बनती हैं भैरवी कुछ सामने तो आई  लेकिन अभी भी रहस्य तो बना ही है

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