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वैदिक विधि से घर में करें मंगल की पूजा, होगा मंगल दोष दूर

संकल्प मंत्र
देशकालौ स्मृत्वा मम जन्म राशे: समाशान्नामराशे: सकाशाज्जन्म लग्ना द्वर्षलग्नाद्वा गोचारच्चतुर्थाष्टम आदित्यनिष्ट स्थानस्थित भौम (मंगल) सर्वानिष्ट फलनिवृ‍त्तिपूर्वक तृतीयैकादश शुभस्थान स्थित वदुत्तम फल प्राप्तयर्थं आर्युआरोग्य वृध्ययर्थमृणच्छेदार्थम् अमुक रोग विनाशार्थं वा पुत्र प्राप्त्यर्थं श्री मंगल देवता प्रसन्नतार्थ भौमव्रतं करिष्ये।
 संकल्प के पश्चात निम्नलिखित मंत्रों से न्यास आदि करें।
विनियोग
ॐ अस्य मंत्रस्य विरुपाक्ष ऋषि:, गायत्री छंद:, धरात्मजोभौमोदेवता, हां बीजम्, हं स:शक्ति: सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोग: 
 ऋष्यादि न्यास
 ॐ विरूपाक्ष ऋषये नम:- शिरसि।
गायत्री छं दसे नम: -मुखे।
धरात्मज भौम देवतायै नम:- नेत्रयो।
हां बीजाय नम: - गुह्ये
हं स: शक्तये नम:- पादयो।
विनियोगाय नम:- सर्वांगे।
 करन्यास
 ॐ ॐ भौमाय- अंगुष्ठाभ्यां नम:।
ॐ हां भौमाय- तर्जनीभ्यां नम:।
ॐ हं भौमाय- मध्यामाभ्यां नम:।
ॐ स: भौमाय- अनामिकाभ्यां नम:।
ॐ खं भौमाय- कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ॐ ख: भौमाय-करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।
 हृदयादि न्यास
 ॐ ॐ भौमाय- हृदयाय नम:।
ॐ हां भौमाय- शिरसे स्वाहा।
ॐ हं भौमाय- शिखायै वषट्।
ॐ स: भौमाय- कवचाय हुम्।
ॐ खं भौमाय- नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ख: भौमाय- अस्त्राय फट्।
 ध्यान मंत्र
 उपरोक्त विधि से न्यास करने के उपरान्त मंगल देव के स्वरूप का ध्यान करते हुए नीचे लिखे 'ध्यान मंत्र' का पाठ करें:-
 जपाभं शिवं स्वेद्जं हस्त पद्ममैर्मदा शूलशक्त करे धारयंतम्।
अवंती समुत्यं सुमेषासनस्थं धरानन्दनं रक्त वस्त्रं समीडे।।
 ध्‍यान के बाद मानस पूजा करें। मानस पूजा में देव को मन की कल्पना से रचित पुष्प, नैवेद्य, अर्घ्य, पाद्य आदि अर्पित किया जाता है, जैसे मन ही मन सुन्दर पुष्प की कल्पना करके कहें- हे देव! यह सुन्दर पुष्प मैं आपको अर्पित करता हूं। कृपालु होकर पुष्प स्वीकार करें और मुझे मनोवां‍छित फल प्रदान करें। इसी प्रकार अन्य क्रिया करें।
 तत्पश्चात नीचे लिखे 'मंगल मंत्र' का जप करें। इसकी जप संख्या दस हजार है।
 इस वैदिक मंत्र का जप करने से मंगल देव प्रसन्न होते हैं:-   
ॐ अग्निमूर्द्धा दिव: ककुत्पति पृथिव्या
ऽअयम्। अपां रेतां सि जिन्वति भौमाय नम:।।

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