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विनियोग और न्यास कैसे करे

जो भी साधक या शिष्य हैं ओर साधना क्षेत्र में हैं तो निश्चय ही किसी न किसी साधना को अपनी क्षमतानुसार किया ही होगा पर कभी यह सोचा की यह "विनियोग" नाम के शब्द का अर्थ क्या हैं ओर किस बात को इंगित कर रहा हैं .जो भी साधना क्षेत्र में सफल हो ना चाहता हैं उसे तो पूर्ण सावधानी के साथ
साधना जगत के हर पक्ष को सीखना ही पड़ेगा, हम चाहे कितने भी चतुर हो होशियार हो पर हमें एक बात तो सीखना ही पड़ेगा की जब तक सदगुरुदेव भगवान् इसकी अनुमति देंगे, परमहंस निखिलेश्वरानंद जी के शिष्योंमें कोई कमी हो, संभव ही नहीं हैं, तो यह समय हैं साधना जगत के इस शब्द " विनियोग " केबारे में कुछ जानना का . यह कहा जाता हैंकि " बिनु जाने होय ना प्रीति" साधारण अर्थ तो यही हैं की जब तक आप किसी के बारे में जानेगे नहीं उससे स्नेह भी कैसे कर पायेगे .
यह तथ्य पूर्ण रूप से साधना जगत के सन्दर्भ में ही लगता हैं .पूनः एक प्रश्न सामने आता हैं की आखिर ये सब जानने की हमें आवश्यकता क्यों हैं इसका उत्तर तो यही हैं की जब तक साधना क्षेत्र के बारे में जान का वह आवश्यक भाव भूमि हमारे जीवन में ना आ जाये सफलता कैसे प्राप्त होगी, हाँ सामान्य साधना में सफ़लत संभव हो सकती हैं पर उच्च स्तरीय साधना में सफलता पर प्रश्न वाचक चिन्ह ही हैं .
हर साधक या शिष्य को यह जानना चाहिए ही
एक उदहारण लेते हैं
"ॐ अस्य श्री गुरु मंत्रस्य श्री नारायण ऋषि: , गायत्री छन्दः ,श्री निखिलेश्वरानंद देवता , गुं बीजं , नमः शक्तिः ,श्री गुरु प्रद पूर्वक सकल मनोकामना सिद्ध्येर्थे विनियोगः "
प्रक्रिया सरल हैं सीधे हाँथ में थोडा सा जल लेकर ऊपर लिखे शब्दोंका उच्चारण करे, इसके बाद उस जल को जमीन पर डाल दे. परन्तु कभी सोचा की इसका क्या अर्थ हैं क्या क्या शब्द इसमें उपयोगित हुए हैं . उच्चारण करते समय कहाँ कहाँ ध्यान होना चाहिए
एक एक करके इन्हें हम समझने की कोशिश करते हैं.
क्या आपने कभी "मन्त्र पुरुष" शब्द सुना हैं, शायद नहीं, पर साधना जगत के उच्च लोगों के लिए यह अपरिचित शब्द नहीं हैं हर मंत्र का एक रूप मंत्रपुरुष के रूप में होता हैं , जब साधक किसी मन्त्र की पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर लेता हैं तब यह मंत्र पुरुष उस साधक के सामने प्रत्यक्ष होता ही हैं .

ऋषि इसका उच्चारण करते समय सिर के उपरी के भाग में इनकी अवस्था मानी जाती हैं .
छंद ------- गर्दन में
देवता ----- ह्रदय में
उत्कीलन ---- नाभि स्थान पर
बीजं ------ कामिन्द्रिय स्थान पर
शक्ति --- पैरों में (निचले हिस्से पर)
कीलक --- हांथो में
वास्तव में यह विनियोग एक प्रकार का agreement या समझौता , दिव्यता की साक्षी में होता हैं.
तो अगली बार जबभी आप इस विनियोग शब्द का उच्च्रंकरेंगे आप जानते हैं की कहाँ कहाँ भावना रखना हैं ..
अंग न्यास:
अंग न्यास के विषय में सदगुरुदेव जी कहते हैं ... सीधे हाँ के अंगूठे ओर अनामिका अंगुली को आपस में जोड़ ले ओर सम्बंधित मंत्र का उच्चारण करते जाये , शरीर के जिन भागों का नाम लिया जा रहा हैं उन्हें स्पर्श करते हुए यह भावना रखे की वे भाग अधिक शक्तिशाली ओर पवित्र होते जा रहे हैं .
उदहारण
ॐ ह्रदयाय नमः ----- बतलाई गयी उन्ही दो अंगुली से अपने ह्रदय स्थल को स्पर्श करे
परम तत्वाय शिरसे स्वाहा ----- अपने सिर को
नाराणाय शिखाये फट ---- अपनी शिखा को (जोकि सिर के उपरी पिछले भाग में स्थित होती हैं .)
गुरुभ्यो कवचाय हम --- अपने बाहोंको
नमः नेत्र त्रयाय वौषट-----अपने आँखों को
ॐ अस्त्राय फट --- तीनबार ताली बजाये
( यह पर आपके सामने कुछ ओर तथ्य रखना चाहूँगा , हम तीन बार ताली बजाते क्यों है? , हम हमेशा से बहुत सारे क्षुद्र देवी देवता से घिरे रहते हैं .और जो हमेशा से हमारे द्वारा किये जाने वाले मंत्र जप को हमसे छीनते जाते हैं , तो तीन बार सीधे हाँथ की हथेली को सिर के चारो ओर चक्कर लगाये / सिर के चारो तरफ वृत्ताकार में घुमाये ,इसे पहले यह देख ले की किस नासिका द्वारा हमारा स्वर चल रहा हैं , यदि सीधे हाँथ की और वाला स्वर चल रहा हैं तब ताली बजाते समय उलटे हाँथ को नीचे रख कर सीधे हाँथ से ताली बजाये . ओर यदि नासिका स्वर उलटे हाथ की और/ लेफ्ट साइड का चल रहा हैं तो सीधे हाँथ की हथेली को नीचे रख कर उलटे/लेफ्ट हाँथ से ताली उस पर बजाये .) इस तरीके से करने पर हमारा मन्त्र जप सुरक्षित रहा हैं ,सभी साधको को इस तथ्य ओर चौर्य न्यास पर तो ध्यान देना ही चाहिए ही
कर न्यास :
इस कर न्यास की प्रक्रिया को समझने से पहले हमें यह समझना हो गा की हम भारतीय किस तरीके से नमस्कार करते हैं इसमें हमारे दोनों हाँथ की हथेली आपस में जुडी रहती हैं साथ हि साथ दोनों हांथो की हर अंगुली ,ठीक अपने कमांक की दुसरे हाँथ अंगुली से जुडी होतीहैं
ठीक इसी तरह से यह न्यास की प्रक्रिया भी....
यहाँ पर हमें जो प्रकिर्या करना हैं वह कम से धीरे धीरे एक पूर्ण नमस्कार तक जाना हैं . मेरा तात्पर्य ये हैं की जव् आप पहली लाइन के मन्त्र का उच्चारण करेंगे तब केबल दोनों हांथो के अंगूठे को आपस में जोड़ देंगे , जब तर्जनीभ्याम वाली लाइन का उच्चारण हो गा तब दोनों हांथी की तर्जनी अंगुली को आपस में जोड़ ले (यहाँ पर ध्यान रखे की अभी भी दोनों अंगूठे के अंतिम सिरे आपस में जुड़े ही रहेंगे , इसके बाद मध्यमाभ्यम वाली लाइन के दौरान हम दोनों हांथो की मध्यमा अंगुली को जोड़ दे, पर यहा भी पहले जुडी हुए अंगुली अभी भी जुडी ही रहेंगी. .. इसी तरह से आगे की लाइन के बारे में क्रमशः करते जाये , ओर अंत में करतल कर वाली लाइन के समय एक हाँथ की हथेली की पृष्ठ भाग को दुसरे हाँथ से स्पर्श करे ओर फिर दूसरी हाँथ के लिए भी यही प्रकिर्या करे .
ॐ अंगुष्ठ भ्याम नमः ---- दोनों अंगूठो के अंतिम सिरे को आपस में स्पर्श कराये .
परम तत्वाय तर्जनी भ्याम नमः ---- दोनों तर्जनी अंगुली के अंतिम सिरे को आपस में मिलाये (यहाँ पर अंगूठे मिले ही रहेंगे ),
नारायणाय मध्यमाभ्याम नमः --- दोनों मध्यमा अंगुली के अंतिम सिरे को आपस में मिलाये (यहाँ पर अंगूठे, तर्जनी मिले ही रहेंगे ),
गुरुभ्यो अनामिकाभ्याम नमः ----दोनों अनामिका अंगुली के अंतिम सिरे को आपस में मिलाये (यहाँ पर अंगूठे, तर्जनी, मध्यमा मिले हीरहेंगे ),
नमः कनिष्ठिकाभ्याम नमः ---दोनों कनिष्ठिका अंगुली के अंतिम सिरे को आपस में मिलाये (यहाँ पर अंगूठे, तर्जनी, मध्यमा, अनामिकामिले ही रहेंगे ),
ॐ करतल कर प्रष्टाभ्याम नमः -- - दोनों हांथो की हथेली के पिछले भाग को दूसरी हथेली से स्पर्श करे.

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