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काम भैरवी साधना में सावधानी एवं वर्जनायें – भैरव भैरवी साधना विधि

 यदि आपके धार्मिक या परम्परागत संस्कारों में ये क्रियाएं क्षोभ उत्पन्न करती हैं या अपराधबोध से ग्रसित करती हैं, तो यह काम भैरवी साधना न करें. भैरवी अपनी पत्नी हो या पर-स्त्री साधिका उसे पूर्ण उल्लासित – मन होना चाहिए; क्योंकि बाद के चरणों में उसे ही देवी मानकर पूजा जाता है और शक्ति भी उसेक माध्यम से साधक को प्राप्त होती है। पहले सभी शक्तियाँ भैरवी को प्राप्त होती है। बिमार, दुर्बल, डरी हुई, लज्जा से भरी स्थितियाँ आधार शक्ति को ही कमजोर कर देती है। उस पर दबाब कभी मत डालेंकाम भैरवी साधनाओं में विजया और मदिरा का प्रयोग किया जाता है. यह उलटी साधना है। साधु-सन्यासी; जो सात्विक मार्ग के है; व्रत-उपवास, वह शाक, दूध, सत्तू एवं मन के निग्रह में विश्वास रखते है. मगर इस मार्ग में शारीरिक शक्ति को बनाये रखने के लिए और उसे उत्तेजना देने के लिए मांस, मछली, मदिरा का प्रयोग किया जाता है; पर यह आवश्यक नहीं है। शाकाहारी आहारों में भी शक्ति और सबलता के (इसमें लौह तत्व की अधिक डिमांड होती है, जो लाल रक्त करण निर्मित करते है) की अनेक गर्म सूचियाँ हैं। मदिरा के स्थान पर विजया और एक विशेष प्रकार की गुड, केले के पत्ते, उडूसा के पट्टी, अपामार्ग की जड़, बबूल की छल, बरगद के फलों या कोपलों से बनी मदिरा भी प्रयुक्त की जाती है. जबरदस्ती न करें. यदि मांसाहारी नहीं है, शराब नहीं पीते, तो केवल साधना के लिए इन्हें न अपनाएं. ये साधना तत्व नहीं है. इनका काम शरीर की नेगेटिव ऊर्जा को मजबूत करना और उसे उत्तेजित करना मात्र है. यह कार्य दूसरे माध्यमों से भी हो सकता है.कभी कृत्रिम संशाधनों या कृत्रिम मैथुन का प्रयत्न न करें. भैरवी के बिना भी काम भैरवी साधना कर रहे है, तब भी. भैरवी न हो; तो उसके एक रूप की कल्पना की जाती है. सभी मुद्राओं में उसके साथ होने की कल्पना.साधनाकाल में उत्पन्न उत्तेजना प्रारंभ में अक्सर साधना के बाद तीव्र रति इच्छा से युक्त होती है. जब रोके न रुके; तो रति वर्जित नहीं है. इसमें साधक की काम साधना पतित नहीं होती. मगर यह स्मरण रखना होगा कि साधना का मूल सार कामेच्छा से उत्पन्न ऊर्जा को उर्ध्वगामी बनाना है, रति सुख भोगना नहीं. अभ्यास निरंतर उस ओर होना चाहिए और रतिकाल में भी जारी रहना चाहिए. तीव्र कामेच्छा और चरम सीमा पर पहुँच कर मन को बांधकर रोकना खतरनाक है. इससे गंभीर बीमारियाँ हो सकती है. पर जो बहिरावी विहीन है, उन्हें कृत्रिम साधनों का प्रयोग करना वर्जित है. यानि इन्हें ब्रह्मचर्य में रहना होगा. इसलिए काम भैरवी साधना में बहिरावी आवश्यक मानी गयी हैमंगल, शुक्र, चन्द्रमा और बुध प्रधान स्त्री-पुरुष ही इस साधना की ओर आकृष्ट होते है. भैरवी का चुनाव जिस मंत्र को सिद्ध करना हो, उसके ईष्ट के अनुसार करना चाहिए. सिद्धि भैरव मंत्र की चाह रहे है और भैरवी सूर्य प्रधान है, तो साधना काल में ही तकरार प्रारंभ हो जाएगी. दुश्मन ग्रह के साथी से बचना चाहिए. भैरवी के स्नान, श्रृंगार, अंग चित्रण आदि के समय कामोत्तेजिक होना तो वर्जित नहीं है; पर उसे प्रेम , श्रद्धा, विश्वास की मादकता में परिवर्तित करना चाहिए। यह इस समय देवी होती है।(प्रक्रिया क्रमशः)। इस समय कोई भी अनैतिक, कुत्सित , हिंसक भाव लाना सर्वनाश कर दे सकता है। आप पागल हो सकते है।दूसरे चरण में भैरवी चक्र का निर्माण भैरवी करती है. पहले दोनों गुरु निर्देश में भैरवी चक्र एवं मदघट की पूजा करते है. यह स्वस्तिक भैरवी चक्र आदि से चित्रित और आम्र कलशों से सुसज्जित, सुगन्धित मद्द्रव्य से भरा होता है. इसके ऊपर घी का दीपक जलाया जाता है. चक्र की पूजा में घट पूजा साथ ही होती है. इसमें घट में देवी का वास होता है. यह होने पर भैरवी की पूजा होती है, पर इन सबसे पहले गुरु की पूजा होती है. यह आयोजन स्थान गुप्त होनी चाहिए.इस चक्र में भैरवी का 9 दिन नौ प्रकार के रूपों में पूजन होता है. भैरवी साधना में मंत्र ईष्ट के अनुसार होता है. चक्र, घट, सजावट बनी रहती है. निर्देश है कि दिन में साधक, भैरवी और अन्य भी यहाँ सामान्य पूजा करें (ईष्ट की) और रात में साधना कार्य करें. इस मार्ग में गोपनीयता एक परम और कट्टर नियम है.तमाम तंत्र –साधनाओं में भी यही स्थिति है. मैं किसी गुरु-परम्परा से किसी भी विद्या के लिए सपथ बद्ध नहीं हूँ. दूसरे में समझता हूँ कि स्त्री पुरुष का सम्बन्ध केवल शारीरिक न होकर आध्यात्मिक हो; तो अनेक क्षेत्रों में जीवन सुखमय हो जाए और मनुष्य अतिरिक्त सफलताएं प्राप्त कर ले. इसलिए काम भैरवी साधना की कुछ सरल प्रारम्भिक विधियों को प्रकाशित करना अनैतिक नहीं है. फिर भी बिना गुरु इन्हें न करें. कोई बात विपरीत गयी, तो मैं इसका जिम्मेदार नहीं होऊँगा. परम्परागत विद्याओं के प्रयोगों के वैज्ञानिक सूत्रों को समझकर विकसित की गयी मेरी विधियों में आधुनिक यंत्रो का भी प्रयोग होता है. यह परम्परागत विधियों से चार गुणा कम समय में सफलता प्रदान करती है.

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