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दिव्य दृष्टि (श्रीहनुमान)

दिव्य दृष्टि (श्रीहनुमान) साधना- यह साधना अत्यंत दुर्लभ और प्राचीन है।इस साधना के माध्यम से साधक किसी भी मृत आत्मा,भूत प्रेत आदि इतरयोनियों को आज्ञा चक्र से देख सकता है,अनुभव कर सकता है,उनसे मानसिक रूप से वार्तालाप कर सकता है। इस साधना का सम्बंध आज्ञा चक्र से होता है। साधक हनुमानजी की इस दिव्य दृष्टि साधना को सिद्ध करने के बाद आंखे बंद करकेआज्ञा चक्र पर ध्यान केंद्रित करके जब मानसिक रूप से अपने आसपास की आत्माओं को बुलाता है तो यदि आत्मा उस समय वहां उपस्थित होगी तो तुरंत साधक के आज्ञा चक्र में प्रकट होगी । सभी साधको को अलग अलग रूपो में आत्मायें दिखाई देती हैं जैसे एक ही आत्मा किसी साधक को काली परछाई के रूप में दिखेगी तो किसी को पूर्ण वस्त्र पहने हुये। जिन साधको का आज्ञा चक्र विकसित नही होता है और वे खुली आँखों से आत्माओं जैसे अप्सरा,कर्णपिशाचीनी,परी, जिन्न, प्रेत,यक्षिणी आदि को देखने की जिजीविषा रखते है तो ऐसे साधको की स्थिति मृगमरीचिका की तरह होती है,हिरण की कस्तूरी की तरह होती है। ऐसे साधको को साधना के बड़े बड़े अनुभव होते है किंतु न तो देवी देवता आदि उनको आज्ञा चक्र में दर्शन देते है और न वचन(मानसिक रूपसे ) देते है। ऐसे साधक जीवन भर कड़ी मेहनत ,साधना में करते है किंतु उनका रिजल्ट शून्य होता है। उनको केवल साधना या सिद्धि के समय ऐसे अनुभव होते है जैसे अचानक कमरे के सुगंध तेजी से बढ़ गयी हो,किसी के चलने फिरने की आहट महसूस हो रही हो,कोई साधक के पास बैठा हो,स्त्री के पायलों के घुँघरू की आवाज महसूस हो रही हो,आसन में बैठने पर दिशा बदल जाना अर्थात जब साधक आंखे बंद करके जैसे उत्तर दिशा की और मुख करके मन्त्र जाप कर रहा हो तो कुछ समय बाद साधक का मुख पूर्व,पश्चिम या दक्षिण दिशा में हो जाना। अचानक से दूध के रंग की तरह साधक के चारो तरफ सफेद प्रकाश महसूस होना,किसी अज्ञात ऊर्जा का शरीर मे प्रवेश करना आदि। यह सभी घटनायें साधक के साथ होती है और साधक को युवावस्था से वृद्धावस्था आ जाती है किंतु एक भी सिद्धि वचनों से सिद्ध नही होती है।सबमे केवल अनुभव होता है। जिस तरह एक मनुष्य बिना नेत्रज्योति के नेत्रहीन है उसी तरह साधक बिना आज्ञाचक्र जाग्रत किये सभी साधना व्यर्थ है।उसका परिश्रम इस तरह से व्यर्थ होता है जैसे किसी छलनी में पानी भरने का प्रयास।। जो साधक खुली आँखों से आत्माओं को देखने की इच्छा से साधना करते है वो भी सब सफल नही होते है। ईश्वर ने सभी प्राणियों में आज्ञाचक्र दिया जिसके माध्यम् से आत्माओ से संपर्क ,बातचीत,साधक की परीक्षा ,वचन सब होते है।खुली आँखों से नही होता है। जब स्वयं सभी देवी देवता आँखे बंद कर आज्ञा चक्र के माध्यम से किसी दृश्य को ,घटना आदि को जानते है तो फिर ये खुली आँखों से दिखने का अर्थ कहाँ तक सत्य है। जब साधक के पास दिव्य दृष्टि होती है और साधक को सिद्धि करता है तो साधक की 90% आत्मा मन्त्र के देवी या देवता के होती है और 10% आत्मा साधक के शरीर मे होती है उस स्थिति में साधक की परीक्षा मन्त्र के देवी या देवता लेते है जैसे साधक को कहेंगे इस पहाड़ से कूद जाओ आदि आदि ,यदि साधक सफल रहा तो अंतिम दिन साधक के वचन हो जाते है और साधक जनमानस की समस्या का समाधन अपनी सिद्धि के माध्यम से करता है। जो साधक खुली आँखों से आत्माओ को देखना चाहते है उनके लिये नीम के पेड़ पर आम लगाना जैसा है। हमारा उद्देश्य साधको को सही ज्ञान प्राप्त कराना है न कि भीड़ बढ़ाना। दिव्य दृष्टि साधना किसी भी मंगलवार से शुरू कर सकते है।यह साधना 3 दिवसीय है। यह साधना बन्द कमरे में कई जाती है। साधक को माथे पर लाल सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए ।लालवस्त्र धारण करने चाहिये। कुशा का आसन होना चाहिए। रुद्राक्ष की माला 108 दानो की सिद्ध हुई होनी चाहिये। साधक अपने सामने लकड़ी की चौकी स्थापित करे,उसके बाद उस पर लाल वस्त्र बिछाय। जल का ताम्र कलश बायीं तरफ रखे। हनुमान जी के फोटो को कांसे की थाली में रखे।फूलो की माला,देशी घी का दीया, धूपबत्ती, कपूर,फल,फूल ,मिठाई,कस्तूरी,लौंग,इलायची,सुपारी,पान का बीड़ा (मीठा),चमेली का तेल,सिंदूर चढ़ाय। पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन,गुरु मन्त्र,शिव मन्त्र ,संकल्प, सिद्धि मन्त्र जाप करे।जाप के बाद हनुमान चालीसा,आरती,क्षमा याचना करे।बन्द आंखों से जापकरे।जाप पूर्ण होने पर साधक को आज्ञाचक्र में प्रकाश दिखाई देना शुरू हो जाता है। इससे साधक को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है। मृतात्माओं से संपर्क हो ना शुरू हो जाता है। मन्त्र-तुलसीदास सदा हरि चेरा,कीजै नाथ ह्रदय में डेरा पवनतनय संकट हरन मंगल रूप तेरा काटो हे भगवान चारो चौरासी का फेरा जय श्रीराम।।जय श्रीराम गुरु को कोटि कोटि प्रणाम।। दीया- सिद्धि के लिये विशेष प्रकार से दीपक का निर्माण किया जाता है।।। जैसे पीली मिट्टी आदि का प्रयोग किया जाता है। जो साधक दिव्य दृष्टि साधना सिद्ध करना चाहते है ,वो साधना सिद्ध कर सकते है। योग्य साधक दीक्षा ग्रहण कर दिव्य दृष्टि साधना सिद्ध कर भविष्य की अन्य साधनाओ को पूर्ण सिद्ध और वचनसिद्धि कर सकते है। 

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